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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
भरत चक्रवर्ती, मणुयाणं - मनुजानां- मनुष्यों के, अण्णेसिं - दूसरों के, सण्णिवेसाणं - व्यापारिक केन्द्रों का, आहेवच्चं - आधिपत्य-स्वामित्व, विहराहि - विचरण करो, पउंजंति - प्रयुक्त करते हैं-बोलने में प्रयोग करते हैं।
भावार्थ - हे आनंदप्रद, कल्याणमय, लोकानंद दायक पुत्र! तुम्हारी जय हो, कल्याण हो। अपराजितों को, शत्रुओं को जीतो। जिन्हें जीत लिया है, उनका तथा मित्र-पक्ष का पालन करो। चक्रवर्ती भरत की ज्यों राजगृह के तथा अन्य अनेक गांवों, नगरों, सन्निवेशों आदि में स्थित मनुष्यों पर शासन करो। इस प्रकार राज्य करते रहो। राजा द्वारा ऐसा कहे जाने पर सब ओर से उसका जय-जयकार किया जाने लगा। इस प्रकार मेघकुमार राजा हुआ। वह पर्वतों में महाहिमवान् की तरह शोभायमान हुआ।
(१३६) तए णं तस्स मेहस्स रणो अम्मापियरो एवं वयासी - "भण जाया! किं दलयामो किं पयच्छामो किं वा ते हियइच्छिए सामत्थे (मंते)?"
शब्दार्थ - भण - कहो, दलयामो - दें, पयच्छामो - भेंट करें, हियइच्छिए - हार्दिक इच्छा, सामत्थे - मनोवांछित। ।
भावार्थ - तब मेघकुमार के माता-पिता ने उससे कहा - पुत्र! हम तुम्हें क्या दें, क्या भेंट करें? तुम्हारी हार्दिक इच्छा और मनःकामना क्या है, बतलाओ? . संयमोपकरण की अभ्यर्थना
(१३७) तए णं से मेहे राया अम्मा-पियरो एवं वयासी - इच्छामि णं अम्मयाओ! कुत्तियावणाओ रयहरणं पडिग्गहं च (आणियं) उवणेह कासवयं च सद्दावेह।
शब्दार्थ - कुत्तियावणाओ - कुत्रिकापण से-त्रैलोक्यवर्ती वस्तुओं के प्राप्त होने का देवाधिष्ठित विक्रय-केन्द्र, रयहरणं - रजोहरण-ओघा, पडिग्गहं - पात्र, उवणेह - मंगा कर दें, कासवयं - काश्यप-नाई को।
भावार्थ - तब राजा मेघकुमार ने माता-पिता से इस प्रकार कहा - मेरे लिए कुत्रिकापण से रजोहरण पात्र मंगवा कर दें तथा मुंडन हेतु नाई को बुलवा दें, मैं यह चाहता हूँ।
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