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प्रथम अध्ययन - ऐहिक भोग : असार, नश्वर
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भोग, दान और परिभाजन-वितरण आदि के लिए पर्याप्त हैं। इसलिए तुम ऋद्धि, वैभव, सत्कार एवं समृद्धि का अनुभव करो-दान, भोग एवं वितरण में उपयोग करो। इस प्रकार अपने द्वारा किए गये समुचित कल्याणमय कार्यों का अनुभव करने के पश्चात् भगवान् महावीर स्वामी के पास दीक्षा ग्रहण कर लेना।
(१२६) तए णं से मेहे कुमारे अम्मापियरं एवं वयासी-“तहेव णं अम्मयाओ! जं णं तं वयह-इमे ते जाया। अज्जग-पज्जग-पिउपज्जयागए जाव तओ पच्छा अणुभूयकल्लाणे जाव पव्वइस्ससि, एवं खलु अम्मयाओ! हिरण्णे य सुवण्णे य जाव सावएज्जे अग्गिसाहिए चोरसाहिए रायसाहिए दाइयसाहिए मच्चुसाहिए अग्गिसामण्णे जाव मच्चुसामण्णे सडण-पडण-विद्धंसणधम्मे पच्छा पुरं च णं अवस्स-विप्पजहणिज्जे, से के णं जाणइ अम्मयाओ! के पुब्बिं जाव गमणाए? तं इच्छामि णं जाव पव्वइत्तए।" ____ शब्दार्थ - अग्गिसाहिए - अग्निसाध्य-आग द्वारा जलाए जाने योग्य, चोरसाहिए - चोरों द्वारा चुराए जाने योग्य, रायसाहिए - राजा द्वारा जब्त किए जाने योग्य, दाइयसाहिए - हिस्सेदारों द्वारा बंटाए जाने योग्य, मच्चुसाहिए - मरने के बाद अपने नहीं रहने योग्य, अग्गिसामण्णे - अग्नि के वशवर्ती, मच्चुसामण्णे - मौत के वशवर्ती। .. भावार्थ - मेघकुमार ने माता-पिता से कहा - पितामह, प्रपितामह आदि पूर्वजों से आगत धन-वैभव आदि के प्रचुर दान, भोग एवं वितरण के अनंतर प्रव्रज्या लेने की जो बात आपने कही, वह ठीक है, परंतु हिरण्य, स्वर्ण आदि सारा धन-वैभव ऐसा है, जिसे अग्नि जला सकती है, चोर चुरा सकते हैं, राजा जब्त कर सकते हैं, बंधु-बांधव बँटा सकते हैं। मृत्यु हो जाने पर यह सब छूट जाता है। यह धन-वैभव, अग्नि एवं मृत्यु आदि के लिए सामान्य है, तद्वशवर्ती है। पुद्गल पर्याय होने से सड़ने-गलने एवं जीर्ण शीर्ण होने योग्य हैं। पहले या पश्चात् थोड़े समय में या अधिक समय में, यह अवश्य ही छूट जाता है। और यह. कौन जानता है कि भोक्ता पहले जाएगा या भोग्य वैभव? इसीलिए मैं प्रव्रजित हो जाना चाहता हूँ।
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