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________________ माता-पिता से निवेदन समय-समय पर जब-जब, जहाँ-जहाँ उनकी धर्म देशनाएँ होतीं, अनेक राजामहाराजा, सामंतगण, श्रेष्ठिजन आदि तत्क्षण प्रभावित होते और संयममय साधु-जीवन अपना लेते। माता-पिता से निवेदन (११६) तणं से मेहे कुमारे समणं भगवं महावीरं वंदइ णमंसइ, वं० २ त्ता जेणामेव चाउग्घंटे आसरहे तेणामेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता चाउग्घंटं आसरहं दुरूहइ, दुरूहित्ता महया भड - चंड-गर पहकरेणं रायगिहस्स णयरस्स मज्झमज्झेणं जेणामेव सए भवणे तेणामेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता चाउग्घंटाओ आसरहाओ पच्चोरुह, पच्चोरुहित्ता जेणामेव अम्मापियरो तेणामेव उवागच्छ, उवागच्छित्ता अम्मापिऊणं पायवडणं करेइ, करेत्ता एवं वयासी- “ एवं खलु अम्मयाओ ! मए समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्मे णिसंते, सेवि य मे धम्मे इच्छिए पडिच्छिए अभिरुइए । " शब्दार्थ अम्मापणं प्रथम अध्ययन - Jain Education International माता-पिता के, पायवडणं अम्मयाओ- माता-पिता, णिसंते श्रवण किया, अभिरुइए - अभिरुचित - रुचिपू । भावार्थ - मेघकुमार ने श्रमण भगवान् महावीर स्वामी को वंदन नमस्कार किया। वह अपने चातुर्घण्ट अश्वरथ पर आरूढ़ हुआ । सामंतों योद्धाओं एवं विशिष्टजनों के समूह के साथ राजगृह नगर के बीचोंबीच चलता हुआ, अपने भवन में पहुँचा । रथ से उतरा तथा वहाँ से चलकर जहाँ माता-पिता थे, वहाँ आया। उनके चरणों में वंदन किया और निवेदन कियामाताश्री - पिताश्री ! मैंने श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के पास धर्म का श्रवण किया है। उसमें मेरी इच्छा - अभिलाषा और अभिरुचि उत्पन्न हुई है। (११७) - - १११ - For Personal & Private Use Only पाद - वंदन - चरणों में प्रणाम, तए णं तस्स मेहस्स अम्मापियरो एवं वयासी- धण्णोसि तुमं जाया । संपुण्णोसि० कयत्थोसि० कयलक्खणोसि तुमं जाया ! जण्णं तुमे समणस्स www.jainelibrary.org
SR No.004196
Book TitleGnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages466
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size9 MB
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