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________________ ११२ . ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्मे णिसंते, से वि य ते धम्मे इच्छिए. पडिच्छिए अभिरुइए। शब्दार्थ - जाया-पुत्र, संपुण्णो - पुण्यवान, कयलक्खणो - कृतलक्षण-शुभलक्षण युक्त। भावार्थ - मेघकुमार का कथन सुनकर माता-पिता ने कहा - पुत्र! तुमने श्रमण भगवान् महावीर स्वामी से धर्म का श्रवण किया, तुम्हारे मन में धर्म के प्रति इच्छा, अभिलाषा और अभिरुचि उत्पन्न हुई, तुम वास्तव में धन्य, पुण्यशाली, कृतार्थ और भाग्यशाली हो। (११८) तए णं से मेहे कुमारे अम्मापियरो दोच्चंपि तच्चंपि एवं वयासी-एवं खलु अम्मयाओ! मए समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्मे णिसंते, से वि य मे धम्मे इच्छिए पडिच्छिए अभिरुइए, तं इच्छामि णं अम्मयाओ! तुब्भेहिं अब्भणुण्णाए समाणे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए मुंडे भवित्ता णं अगाराओ अणगारियं पव्वइत्तए। शब्दार्थ - अब्भणुण्णाए - अभ्यनुज्ञात-आज्ञा पाकर। भावार्थ - मेघकुमार ने अपने माता-पिता को दूसरी बार, पुनः तीसरी बार इस प्रकार कहा-माताश्री-पिताश्री! मैंने भगवान् महावीर स्वामी के पास जो धर्म श्रवण किया है, वह इच्छित, वांछित और अभिरुचिकर है। मैं आपसे आज्ञा प्राप्त कर, गृहत्याग कर, भगवान् महावीर स्वामी के पास अनगार धर्म श्रमण-दीक्षा ग्रहण करना चाहता हूँ। माता की भाव-विह्वलता (११९) तए णं सा धारिणी देवी तं अणिठें अकंतं अप्पियं अमणुण्णं अमणामं असुयपुव्वं फरुसं गिरं सोच्चा णिसम्म इमेणं एयारूवेणं मणो-माणसिएणं महया पुत्तदुक्खेणं अभिभूया समाणी सेयागय-रोमकूव-पगलंत-विलीणगाया सोयभरपवेवियंगी णित्तेया दीण-विमण-वयणा करयल-मलियव्व कमलमाला : Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004196
Book TitleGnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages466
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size9 MB
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