________________
१०८
ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
-+-+
+
+
+
+
+
+
+
+
+
+
+
भावार्थ - तब मेघकुमार ने स्नान किया। सुंदर वस्त्र एवं अलंकारों से विभूषित हुआ। चातुर्घण्ट अश्वरथ पर सवार हुआ। राजगृह के बीच से वह निकला। उस पर कोरण्ट पुष्प की मालाएँ लगी हुई है ऐसा छत्र तना था। अनेक सामंत, योद्धा, श्रेष्ठिजन एवं नागरिक वृंद से वह घिरा था। वह चल कर गुणशील चैत्य में पहुँचा। वहाँ छत्रों पर छत्र और पताकाओं पर पताकाएं आदि, भगवान् महावीर के अतिशयों को देखा। साथ ही साथ यह भी देखा कि विद्याधर चारण मुनि तथा मुंभक देव नीचे उतर रहे हैं, ऊपर जा रहे हैं। यह सब देखकर वह अश्वरथ से नीचे उतरा और पांच प्रकार के अभिगम पूर्वक श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के सम्मुख आया। वे पांच प्रकार के अभिगम इस प्रकार हैं - उसने १. पुष्पादि सचित्त द्रव्यों का त्याग किया, २. वस्त्र आदि अचित्त द्रव्यों को सुव्यवस्थित किया, ३. दुपट्टे (बिना सिला हुआ कंधों पर डालने का सफेद वस्त्र) को मुँह पर से कन्धों पर रखा, ४. भगवान् महावीर पर दृष्टि . पड़ते ही हाथ जोड़े तथा ५. मन को उनकी ओर एकाग्र किया। ___यों पांच अभिगम पूर्वक वह भगवान् महावीर स्वामी के सान्निध्य में आया। उनको तीन बार आदक्षिण-प्रदक्षिणा पूर्वक (सिरसावर्त पूर्वक) वंदन, नमस्कार किया तथा न उनसे अधिक दूर एवं न अधिक निकट स्थित होकर हाथ जोड़ता हुआ नमस्कार करता हुआ विनयपूर्वक उनकी पर्युपासना करने लगा। दीक्षा की भावना का उद्भव
(११४). तए णं समणे भगवं महावीरे मेहस्स कुमारस्स तीसे य महइमहालियाए परिसाए मज्झगए विचित्तं धम्ममाइक्खइ -
"जहा जीवा बज्झंति मुच्चंति जह य संकिलिस्संति। . धम्मकहा भाणियव्वा जाव परिसा पडिगया।"
शब्दार्थ - विचित्तं - विचित्र-विविध प्रकार से, आइक्खइ- आख्यात (कथन) करते हैं, बझंति- बद्ध होते हैं, मुच्चंति - मुक्त होते हैं, जह - यथा, संकिलिस्संति - घोर कष्ट पाते हैं, भाणियव्वा - कहना चाहिये।
भावार्थ - तब श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने मेघकुमार एवं अतिविशाल परिषद् के
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org