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उत्क्षिप्तज्ञात नामक प्रथम अध्ययन - मेघकुमार द्वारा भ० की पर्युपासना
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भावार्थ - मेघकुमार कंचुकी से यह सुनकर बहुत हर्षित और प्रसन्न हुआ। उसने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया और उनसे कहा-देवानुप्रियो! शीघ्र ही चातुर्घण्ट अश्वरथ को जुड़वा कर यहाँ उपस्थित करो। कौटुंबिक पुरुषों ने वैसा ही किया। . मेघकुमार द्वारा भगवान् की पर्युपासना
(११३) तए णं से मेहे पहाए जाव सव्वालंकार विभूसिए चाउग्घंटं आसरहं दुरूढे समाणे सकोरंट-मल्लदामेणं छत्तेणं धरिजमाणेणं महया भड-चडगर-विंदपरियाल-संपरिवुडे रायगिहस्स णयरस्स मज्झमझेणं णिग्गच्छइ, णिग्गच्छित्ता जेणामेव गुणसिलए चेइए तेणामेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स छत्ताइच्छत्तं पडागाइपडागं विज्जाहर-चारणे जंभए य देवे ओवयमाणे उप्पयमाणे पासइ, पासित्ता चाउग्घंटाओ आसरहाओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता समणं भगवं महावीरं पंचविहेणं अभिगमेणं अभिगच्छइ तंजहा-१. सचित्ताणं दव्वाणं विउसरणयाए २. अचित्ताण दव्वाणं अविउंसरणयाए, ३. एगसाडियं उत्तरासंगकरणेणं, ४. चक्खुप्फासे अंजलिपग्गहेणं, ५. मणसो एगत्ती करणेणं। जेणामेव समणे भगवं महावीरे तेणामेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरें तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स णच्चासण्णे णाइदूरे सुस्सूसमाणे णमंसमाणे पंजलिउडे अभिमुहे विणएणं पजुवासइ।
शब्दार्थ - ओवयमाणे - नीचे उतरते हुए, उप्पयमाणे - ऊपर जाते हुए, पच्चोरुहइ - नीचे उतरता है, पंचविहेण - पांच प्रकार के, अभिगमेणं - सावद्य-व्यापार के परित्याग पूर्वक अभिगच्छइ - सामने जाता है, सचित्ताणं - सचित्त - प्राणयुक्त, दव्वाणं - द्रव्यों का, विउसरणयाएव्युत्सर्जन-त्याग, अचित्ताणं - अचित्त, एगसाडिय - एक शाटिक-दुपट्टा, उत्तरासंग करणेणं - मुंह पर से कंधों पर डालते हुए, चक्खुप्फासे - दृष्टिगोचर होते ही, अंजलिपग्गहेणं - हाथ , जोड़कर, एगत्तीकरणेणं - एकाग्र करके, पजुवासइ - पर्युपासना करता है।
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