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प्रथम अध्ययन विवाह-संस्कार
भत्तिचित्तं खंभुग्गय-वयर वेइया परिगयाभिरामं विज्जाहर - जमल- -जुयलजंतजुत्तं पिव अच्ची - सहस्स - मालणीयं रूवग - सहस्स कलियं भिमाणं भिब्भिसमाणं चक्खुल्लोयणलेसं सुहफासं सस्सिरीयरूवं कंचण-मणि-रयणथूभियागं णाणाविह - पंचवण्ण-घंटा पडाग-परिमंडियग्ग - सिहरं धवल - मरीचि - कवयं विणिम्मुयंतं लाउल्लोइय - महियं जाव गंधवट्टिभूयं पासाईयं दरिसणिज्जं अभिरूवं पडिरूवं ।
शब्दार्थ महं महान् - विशाल, लीलट्ठिय क्रीड़ारत, णिचिय सुंदर रूप में निर्मित-रचित, विज्जाहर - जमल-जुयल - जंतजुत्त - विद्याधरों के जोड़ों से युक्त, अच्ची सहस्स मालणीयं - सहस्त्रों किरणों से देदीप्यमान, भिमाणं भावित होता हुआ चमकता हुआ, भिब्भिसमाणं - विशेष रूप से भासित होता हुआ, चक्खुल्लोयण-लेसं - नेत्रों द्वारा देखने - योग्य, परिमंडिय - सुशोभित, अग्गसिहरं- शिखर का ऊपरी भाग, मरीचि - कवयं श्वेत किरणों का समूह, विणिम्मुयंतं - छोड़ता हुआ - फैलाता हुआ, लाउल्लोइयमहियं विभिन्न कुसुमों की सुगंध से परिव्याप्त ।
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भावार्थ राजा श्रेणिक ने मेघकुमार के लिए विशाल भवन का निर्माण कराया। वह सैंकड़ों स्तंभों पर निर्मित था । उस पर अनेक भाव -१ व-भंगिमायुक्त पुतलियों - शाल भंजिकाओं की आकृतियाँ उकेरी हुई थीं। ऊंची सुंदर वज्र रत्न निर्मित वेदिकाएं तथा तोरण द्वार थे। उसके भीतर खम्भे वैडूर्य, रत्न निर्मित तथा विविध मणिरत्न खचित थे, अत्यन्त उज्जवल थे। उसका भूमि भाग सर्वथा समतल, विशाल और अति रमणीय था । उस भवन पर अनेक पशु-पक्षी, मनुष्य आदि के भिन्न-भिन्न प्रकार के चित्र बने थे । वे भवन अत्यन्त उज्ज्वल आभा से देदीप्यमान थे । देखते ही दर्शकों के नेत्र उनमें रम जाते थे। उसके शिखरों पर नाना प्रकार के घंटे, ध्वजाएं, फहराती थीं जिनमें घटियाँ लगी थी जिससे वह बड़ा सुहाना लगता था । वह भवन अत्यन्त श्वेत एवं चमकीला था । ऐसा लगता था कि उससे श्वेत किरणें प्रस्फुटित हो रही हों। वह अत्यंत सुगंधित, बहुविध पुष्पों के सौरभ से महकता था । इस प्रकार वह भवन बड़ा रमणीय और कमनीय था ।
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