________________
१००
ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
रयणद्धयचंदच्चिए णाणा-मणि-मयदामालंकिए. अंतो बहिं च सण्हे तवणिजरुइल-वालुयापत्थरे सुहफासे सस्सिरीयरूवे पासाईए जाव पडिरूवे। __ शब्दार्थ - पासायवडिंसए - उत्तम प्रासाद-महल, तवणिज - स्वर्ण, अब्भुग्गय- . मूसिय - ऊंचे, मनोहर, पहसिए - हंसते हुए, वाउछुय - हवा से हिलती हुई, विजय वेजयंती - विजयवैजयन्ती- विजय सूचक ध्वजा, पडागा - पताका-छोटी ध्वजा, छत्ताइच्छत्तकलिए - छोटे और बड़े छत्रों से शोभित, तुंगे - अत्यन्त उच्च, अभिलंघमाणं - लांघते हुए, सिहरे - शिखर, जालंतररयणपंजर - रत्नों से जड़े हुए झरोखों के छिद्र, वियसिय - विकसित-खिले हुए, सण्हे - चिकने, अद्धयचंदच्चिए - अर्द्ध चन्द्राकार सोपानों-सीढ़ियों से युक्त, रुइल - रुचिर-सुन्दर, पत्थरे - आंगण, सुहफासे - सुखमय स्पर्श युक्त, सस्सिरीयरूवेशोभामयरूपयुक्त, पासाईए - प्रसन्नता प्रद, पडिरूवे - सुन्दर आकृतियुक्त। .
भावार्थ - मेघकुमार के माता-पिता ने जब यह देखा कि कुमार बहत्तर कलाओं में निपुण, साहसी और समर्थ हो गया है, तब उन्होंने आठ महल बनवाए। वे महल बड़े ही . सुन्दर, उन्नत और दीप्तिमय थे। आभा से ऐसा प्रतीत होता था मानो वे हँस रहे हों। वे स्वर्ण मणियों और रत्नों से विविध रूप में खचित-जटित थे। उन पर लहराती हुई विजय सूचक बड़ीबड़ी ध्वजाएं और पताकाएं बहुत ही सुहावनी लगती थीं। उन पर छोटी-बड़ी अनेक छत्रियाँ बनी थीं। वे प्रासाद इतने ऊंचे थे मानो आकाश का उल्लंघन कर रहे हों। उनके झरोखों में तरह-तरह के रत्न जड़े थे। उनकी स्तूपिकाएं-गुम्बज रत्नों से, मणियों से शोभित थी। उनके रत्न-जटित, अर्द्धचन्द्रकार सोपान बहुत ही मनोरम थे। उनके आंगन में स्वर्णमयी बालुका बिछी थी। उसका स्पर्श अत्यन्त ही सुखप्रद था। वे प्रासाद बड़े ही दर्शनीय और मनोहर थे, उन्हें देखते ही चित्त में अतीव प्रसन्नता होती थी।
(१०३) एगं च णं महं भवणं कारेंति अणेग-खंभ-सय-सण्णिविटुं लीलट्ठियसालभंजियागं अब्भुग्गय-सुकय-वइर-वेइयातोरणवररइयसाल-भंजिया सुसिलिट्ठ-विसिट्ठलट्ठसंठिय पसत्थवेरुलिय खंभ-णाणा-मणि-कणगरयणखचिय उज्जलं बहुसमसुविभत्त णिचिय-रमणिजभूमिभागं ईहामिय जाव
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org