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________________ - प्रथम अध्ययन - Jain Education International - कान, विहिप्पगारदेसी भासा विसारए गीयरई गंधव्व णट्टकुसले हयजोही गयजोही रहजोही बाहुजोही बाहुप्पमद्दी अलं भोग समत्थे साहसिए वियालचारी जाए यावि होत्था । शब्दार्थ - णवंग - दो दो आँखें, दो नासिका रन्ध्र - नथुने, जिह्वा, त्वचा एवं मनशरीर के ये नौ अंग, सुत्त सुप्त - अविकसित पडिबोहिए - प्रतिबोधित-जागृत-विकसित, अट्ठारस - विहिप्पगार- अठारह विविध प्रकार की, देसीभासाविसारए लोक भाषाओं में निपुण, गीयरई - संगीत में अभिरुचिशील, गंधव्वणट्टकुसले - गंर्धवों की तरह नाट्य कला में कुशल, हयजोही अश्व पर सवार होकर युद्ध करने में सुयोग्य, गयजोही हाथी पर आरूढ़ होकर युद्ध करने में समर्थ, रहजोही रथ पर चढ़कर युद्ध करने में सक्षम, बाहुजोहीभुजाओं द्वारा युद्ध करने में प्रवीण, बाहुप्पमद्दी- भुजाओं द्वारा शत्रु का मर्दन करने में समर्थ, भोग समर्थ, साहसिए - साहसी, वियालचारी- विकालचारी - अलं - पर्याप्त, भोग समत्थे रात में भी चल पड़ने वाला । - - विवाह-संस्कार भावार्थ - मेघकुमार बहत्तर कलाओं में पंडित - विशेषज्ञ हो गया। उसके शरीर के अंगप्रत्यंग अत्यधिक स्फूर्तिमय तथा विकसित हो गए। वह अठारह प्रकार की लोक भाषाओं में निपुण होगया। संगीत में अभिरुचिशील हुआ, नाट्यकला में गंधर्वों के सदृश कुशल हो गया, गज - रथादि युक्त युद्धों में, बाहु प्रधान द्वन्द्व-युद्ध में वह निष्णात हो गया, अपनी भुजाओं द्वारा शत्रु का मान मर्दन करने में शक्ति संपन्न हुआ। साथ ही साथ सुखोपभोग में समर्थ, प्रत्येक कार्य में साहसशील तथा असमय में भी जहाँ कहीं भी जाने में निर्भीक हुआ । विवाह-संस्कार हह - (१०२) तए णं तस्स मेहकुमारस्स अम्मा पियरो मेहं कुमारं बावत्तरिकलापंडियं जाव वियालचारिं जायं पासंत्ति २ त्ता अट्ठ पासायवडिंसए कारेंति अब्भुग्गय - मूसियपहसिए विव मणि- - कणग-रयण-भत्तिचित्ते वाउद्धय- - विजय- वेजयंती पडागाछत्ताइच्छत्तकलिए तुंगे गगणतल-मभिलंघमाण- सिहरे जालं तर - रयणपंजरुम्मिल्लियव्व मणि-कणग - थूभियाए वियसिय सयपत्त - पुंडरीए तिलय For Personal & Private Use Only - www.jainelibrary.org
SR No.004196
Book TitleGnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages466
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size9 MB
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