________________
४८
सुवण्णपयरगमंडिया णाणामणिरयणविविहहारद्धहार (उवसोभियसमुदया) जाव सिरीए अई अईव उवसोभैमाणा उवसोभेमाणा चिट्ठति ॥
तेसि णं णागदंतगाणं उवरि अण्णाओ दो दो णागदंतपरिवाडीओ पण्णत्ताओ, तेसि णं णागदंतगाणं मुत्ताजालंतरूसिया तहेव जाव समणाउसो !
कठिन शब्दार्थ - किण्हसुत्तबद्धवग्वारियमल्लदामकलावा - काले डोरे में पिरोई हुई पुष्पमालाएं लटक रही है
भावार्थ
उन नागदंतों में बहुत सी काले डोरे में पिरोई हुई पुष्पमालाएं लटक रही है यावत् सफेद वर्ण के डोरे में पिरोई हुई पुष्पमालाएं लटक रही है। उन मालाओं में सोने का लंबूक (पेन्डल) है जो सुवर्ण प्रतर से मंडित है, नाना प्रकार के मणि रत्नों के हारों अर्द्धहारों से वे मालाओं के समुदाय सुशोभित हैं यावत् वे अतीव अतीव शोभायमान हैं।
जीवाजीवाभिगम सूत्र
-
उन नागदंतों के ऊपर अन्य दो नागदंतों की पंक्तियां हैं वे नागदंत मुक्ताजालों के अंदर लटकती हुई स्वर्ण मालाओं, गवाक्ष की आकृति की रत्नमालाओं और छोटी छोटी घंटिकाओं से युक्त है यावत् हे आयुष्मन् श्रमण ! वे नागदंतक बड़े बड़े गजदंत के आकार के कहे गये हैं ।
Jain Education International
तेसु णं णागदंतएसु बहवे रययामया सिक्कया पण्णत्ता, तेसु णं रययामएसु सिक्कएसु बहवे वेरुलियामईओ धूवघडीओ पण्णत्ताओ, तंजा - ताओं णं धूवघडीओ कालागुरुपवरकुंदरुक्कतुरुक्कधूवमघमघंतगधुद्धयाभिरामाओ सुगंधवरगंधगंधियाओ गंधवट्टिभूयाओ ओरालेणं मणुण्णेणं घाणमणणिव्वुइकरेणं गंधेणं तप्परसु सव्वओ समंता आपूरेमाणीओ आपूरेमाणीओ अईव अईव सिरीए जाव चिट्ठति ।
कठिन शब्दार्थ - सिक्कया छींके, धूवघडीओ - धूपघटिकाएं (धूपनियां), कालागुरुपवरकुंदरुक्कतुरुक्कधूवमघमघंतगंधुद्धयाभिरामाओ- काले अगर, श्रेष्ठ चीड और लोबान के धूप, की मघमघाती सुगंध से मनोरम ।
भावार्थ - उन नागदंतकों में बहुत से रजतमय छींके कहे गये हैं। उन रजतमय छींकों में बहुतसी धूपघटिकाएं हैं। वे धूपघटिकाएं काले अगर, श्रेष्ठ चीड़ और लोबान की धूप की मघमघती सुगंध के फैलाव से मनोरम है, सुगंधित पदार्थों की गंध जैसी सुगंध उनसे निकल रही है वे सुगंध की गुटिका (बट्टी) जैसी प्रतीत होती है। वे अपनी उदार, मनोज्ञ तथा नाक एवं मन को तृप्ति देने वाली सुगंध से आसपास के चारों ओर के प्रदेशों को पूरित करती हुई अतीव अतीव सुशोभित हो रही है।
विजयस्स णं दारस्स उभओ पासिं दुहओ णिसीहियाए दो दो सालिभंजिया
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org