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________________ तृतीय प्रतिपत्ति - जंबूद्वीप के द्वारों का वर्णन ४९ परिवाडीओ पण्णत्ताओ, ताओ णं सालभंजियाओ लीलट्ठियाओ सुपयट्ठियाओ सुअलंकियाओ णाणागारवसणाओ णाणामल्लपिणद्धाओ मुट्ठीगेज्झमझाओ आमेलगजमलजुयलवट्टिअब्भुण्णयपीणरइयसंठियपओहराओ रत्तावंगाओ असियकेसीओ मिउविसयपसत्थलक्खणसंवेल्लियग्गसिरयाओ ईसिं असोगवरपायवसमुट्ठियाओ वामहत्थगहियग्गसालाओ ईसिं अद्धच्छिकडक्खचिट्ठिएहिं सूसेमाणीओ इव चक्खुल्लोयणलेसाहिं अण्णमण्णं खिज्जमाणीओ इव पुढविपरिणामाओ सासयभावमुवगयाओ चंदाणणाओ चंदविलासिणीओ चंदद्धसमणिडालाओ चंदाहियसोमदंसणाओ उक्का इव उज्जोएमाणीओ विज्जुघणमरीइसूरदिप्पंतसेयअहिययरसंणिगासाओ सिंगारागारचारुवेसाओ पासाइयाओ ४ तेयसा अईव अईव सोभेमाणीओ सोभेमाणीओ चिटुंति॥ विजयस्स णं दारस्स उभओ पासिं दुहओ णिसीहियाए दो दो जालकडगा पण्णत्ता, ते णं जालकडगांसव्वरयणामया अच्छा जाव पडिरूवा॥ कठिन शब्दार्थ-सालभंजियापरिवाडीओ - सालभंजिका (पुतलियों की पंक्तियां), लीलट्ठियाओलीला करती हुई-सुंदर अंगचेष्टाएं करती हुई, सुपइट्ठियाओ - सुप्रतिष्ठित, णाणागारवसणाओ - नाना प्रकार के वस्त्रों से सज्जित, णाणामल्लपिणद्धिओ - नानामल्यपिनद्धा:-अनेक मालाएं पहनाई हुई है, मुट्टिगेज्झमझाओ. - मुष्टि गाह्यमध्या:-मुट्ठि में आएं जितनी पतली कमर, आमेलगजमलजुयलवट्टिअब्भुण्णयपीणरहयसंठियपओहराओ - आमेलक यमल युगल वर्त्यभ्युन्नत पीन रतिदसंस्थित पयोधरा:-समश्रेणिक चुचुकयुगल से युक्त गोलाकार उठे हुए पुष्ट एवं रति उत्पन्न करने वाले पयोधर (स्तन), मिउविसयपसस्थलक्खणसंवेल्लियग्गसिरयाओ - मृदुविशदप्रशस्त लक्षण संवेल्लिताग्रशिरोजाः - उनके बाल मृदु, विशद-स्वच्छ, प्रशस्त लक्षण वाले और मुकुट से आवृत्त अग्रभाग वाले हैं। भावार्थ - उस विजय द्वार के दोनों ओर नैषेधिकाओं में दो दो सालभंजिका (पुतलियों) की पंक्तियां कही गई हैं। वे पुतलियां लीला करती हुई चित्रित की गई हैं, सुंदर ढंग से स्थित हैं, सुंदर वेशभूषा से अलंकृत हैं, रंगबिरंगे कपड़ों से सज्जित हैं, उन्हें अनेक मालाएं पहनाई गई हैं उनकी कमर इतनी पतली है कि मुट्ठी में आ सकती है। उनते स्तन समश्रेणिक चुचुक युगल से युक्त, कठिन होने से गोलाकार, उठे हुए, पुष्ट और रति पैदा करने वाले हैं। इन पुतलियों के नेत्रों के कोने लाल हैं। उनके बाल काले, कोमल विशद-स्वच्छ हैं, प्रशस्त लक्षण वाले हैं और उनका अग्रभाग मुकुट से आवृत्त है। ये सालभंजिकाएं अशोक वृक्ष का सहारा लिये हुए खड़ी हैं। बाएं हाथ से इन्होंने अशोक वृक्ष की शाखा Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004195
Book TitleJivajivabhigama Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2003
Total Pages422
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size9 MB
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