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________________ ४६ जीवाजीवाभिगम सूत्र इस द्वार पर ईहामृग, वृषभ, घोड़ा, मनुष्य, मगर, पक्षी, सर्प, किन्नर, रुरु (मृग), सरभ (अष्टापद) चमर, हाथी, वनलता और पद्मलता के विचित्र चित्र बने हुए हैं। खंभों पर वज्रवेदिकाओं के कारण यह द्वार अत्यंत आकर्षक है। यह द्वार ऐसा लगता है मानो विशिष्ट विद्याशक्ति के धारक समश्रेणी के विद्याधरों के युगलों की शक्ति विशेष से प्रभासित हो रहा हो। यह द्वार हजार रूपकों से युक्त है। यह दीप्तिमान है, विशिष्ट दीप्तिमान है देखने वालों के नेत्र इसी पर टिक जाते हैं। इसका स्पर्श बहुत ही शुभ है या सुखरूप है। इसका रूप बहुत ही शोभा युक्त है। यह द्वार प्रसन्नता पैदा करने वाला, दर्शनीय, अभिरूप और प्रतिरूप है। इस द्वार का विशेष वर्णन इस प्रकार हैं - इसकी नींव वज्रमय है। इसके पाये रिष्ट रत्न के बने हुए हैं। इसके स्तंभ वैडूर्य रत्न के हैं। इसका भूमितल स्वर्ण से उपचित और प्रधान पांच वर्गों की मणियों और रत्नों से जटित है। इसकी देहली हंसगर्भ रत्न की, इन्द्रकील गोमेयक रत्न की और द्वार शाखाएं लोहिताक्ष रत्नों की बनी हुई है। इसका उत्तरंग-द्वार पर तिर्यक् रखा हुआ काष्ठ ज्योतिरस रत्न का और किवाड़ वैडूर्य मणि के हैं। दो पटियों को जोड़ने वाली कीले लोहिताक्ष रत्न की हैं, संधियां वज्रमय हैं। इनके समुद्गक-सूतिकागृह नाना मणियों के हैं। इसकी अर्गला और अर्गला रखने का स्थान वज्ररत्नों का है। इसकी आवर्तनपीठिका वज्ररत्न की है। किवाड़ों का भीतरी भाग अंक रत्न का है। इसके दोनों किवाड़ अंतररहित और सघन है। उस द्वार के दोनों तरफ की भित्तियों में १६८ भित्तिगुलिकापीठक तुल्य आलिया है-और १६८ ही गोमानसी-शय्याएं (पलंग विशेष) हैं। इस द्वार पर नाना मणिरत्नों के सौ के चित्र बने हैं तथा लीला करती हुई पुतलियां भी नाना मणियों की बनी हुई है। इस द्वार का कूट वज्ररत्नमय है और कूटभाग का शिखर चांदी का है। उस द्वार की छत के नीचे का भाग तपनीय स्वर्ण का है। इस द्वार के झरोखे मणिमय बांस वाले और लोहिताक्षमय प्रतिबांस वाले तथा रजतमय भूमि वाले हैं। इसके पक्ष और पक्ष बाहु अंक रत्न के बने हुए हैं। ज्योतिरस रत्न के बांस और बांसकवेलु (छप्पर) हैं, रजतमयी पट्टिकाएं हैं, जातरूप स्वर्ण की ओहाडणी हैं, वज्ररत्नमय ऊपर की पुंछणी हैं और सर्व श्वेत रजतमय आच्छादन है। बाहुल्य से अंकरत्नमय, कनकमय कूट तथा स्वर्णमय स्तूपिका-लघु शिखर वाला यह विजयद्वार है। उस द्वार की सफेदी शंख तल, निर्मल जमे हुए दही, गाय के दूध के फेन और चांदी के समुदाय के समान है। तिलक रत्नों और अर्द्धचन्द्रों से वह नाना रूप वाला है। नाना प्रकार की मणियों की माला से वह अलंकृत है, अन्दर और बाहर से मृदु पुद्गल स्कंधों से बना हुआ है। तपनीय स्वर्ण की रेत का जिसमें प्रस्तार है। ऐसा वह विजयद्वार सुखद, शुभ स्पर्श वाला, प्रासादीक, दर्शनीय, अभिरूप और प्रतिरूप है। विजयस्स णं दारस्स उभओ पासिं दुहओ णिसीहियाए दो दो चंदणकलसपरिवाडीओ पण्णत्ताओ, ते णं चंदणकलसा वरकमलपइट्ठाणा सुरभिवरवारिपडिपुण्णा Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004195
Book TitleJivajivabhigama Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2003
Total Pages422
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size9 MB
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