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________________ तृतीय प्रतिपत्ति - जंबूद्वीप के द्वारों का वर्णन ४५ कहि णं भंते! जंबुद्दीवस्स दीवस्स विजए णामं दारे पण्णत्ते? गोयमा! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरथिमेणं पणयालीसं जोयणसहस्साई अबाहाए जंबुद्दीवे दीवे पुरच्छिमपेरंते लवणसमुद्दपुरच्छिमद्धस्स पच्चत्थिमेणं सीयाए महाणईए उप्पिं एत्थ णं जंबुद्दीवस्स दीवस्स विजए णामं दारे पण्णत्ते अट्ठ जोयणाई उई उच्चत्तेणं चत्तारि जोयणाई विक्खंभेणं तावइयं चेव पवेसेणं सेए वरकणगथूभियागे ईहामियउसभतुरगणरमगरविहगवालगकिण्णररुरुसरभचमरकुंजरवणलयपउमलयभत्तिचित्ते खंभुग्गयवरवइरवेइयापरिगयाभिरामे विज्जाहरजमलजुयलजंतजुत्तेइव अच्चीसहस्समालिणीए रूवगसहस्सकलिए भिसमाणे भिब्भिसमाणे चक्खुल्लोयणलेसे सुहफासे सस्सिरीयरूवे वण्णो दारस्स तस्सिमो होइ तं०-वइरामया णिम्मा रिट्ठामया पइट्ठाणा वेरुलियामया खंभा जायरूवोवचियपवरपंचवण्णमणिरयणकोट्टिमतले हंसगब्भमए एलुए गोमेज्जमए इंदक्खीले लोहियक्खमईओ दारचेडीओ जोइरसामए उत्तरंगे वेरुलियामा कवाडा वइरामया संधी लोहियक्खमईओ सूईओ णाणामणिमया समुग्गगा वइरामई अग्गलाओ अग्गलपासाया वइरामई आवत्तणपेढिया अंकुत्तरपासए 'णिरंतरियघणकवाडे भित्तीसु चेव भित्तीगुलिया छप्पण्णा तिण्णि होंति गोमाणसी तत्तिया णाणामणिरयणवालरूवगलीलट्ठियसालिभंजियागे वइरामए कूडे रययामए उस्सेहे सव्वतवणिज्जमए उल्लोए णाणामणिरयणजालपंजरमणिवंसगलोहियक्खपडिवंसगरययभोम्मे अंकामया पक्खबाहाओ जोइरसामया वंसा वंसकवेल्लुगा य रययामई पट्टियाओ जायरूवमई ओहाडणी वइरामई उवरि पुञ्छणी सव्वसेयरययामए च्छायणे अंकमयकणगकूडतवणिज्जथूभियाए सेए संखतलविमलणिम्मलदहिघणगोखीरफेणरययणिगरप्पगासे तिलगरयणद्धचंदचित्ते णाणामणिमयदामालंकिए अंतो य बहिं च सण्हे तवणिज्जरुइलवालुयापत्थडे सुहप्फासे सस्सिरीयरूवे पासाईए ४॥ भावार्थ - हे भगवन् ! जम्बूद्वीप नामक द्वीप का विजय द्वार कहां कहा गया है ? . हे गौतम ! जम्बूद्वीप नामक द्वीप में मेरु पर्वत के पूर्व में पैतालीस हजार योजन आगे जाने पर तथा जंबूद्वीप के पूर्वान्त में, लवणसमुद्र के पूर्वार्ध के पश्चिम भाग में सीता महानदी के ऊपर जंबूद्वीप का विजयद्वार कहा गया है। यह द्वार आठ योजन का ऊंचा, चार योजन का चौड़ा और चार योजन का इसका प्रवेश है। अंक रत्न का बना हुआ होने से इसका वर्ण सफेद है। इसका शिखर श्रेष्ठ सोने का है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004195
Book TitleJivajivabhigama Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2003
Total Pages422
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size9 MB
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