SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 61
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४४ जीवाजीवाभिगम सूत्र कठिन शब्दार्थ - पुरापोराणाणं - पूर्वभव में किये हुए, सुचिण्णाणं - शुभ आचरणों-धर्मानुष्ठानों से, सुपरिक्कंताणं- शुभ पराक्रमों का, कल्लाणं - कल्याण रूप, फलवित्तिविसेसं - फल विपाक को भावार्थ - वहां बहुत से वाणव्यंतर देव और देवियां सुखपूर्वक विश्राम करती हैं, लेटती हैं, खड़ी रहती हैं, बैठती हैं, करवट बदलती हैं, रमण करती हैं, इच्छानुसार आचरण करती हैं, क्रीड़ा करती हैं, रति क्रीड़ा करती हैं इस प्रकार वे देव देवियां पूर्वभव में किये हुए धर्मानुष्ठानों का तपस्या आदि शुभ पराक्रमों का शुभ और कल्याणकारी कर्मों के फल विपाक का अनुभव करते हुए विचरते हैं। तीसे णं जगईए उप्पिं अंतो पउमवरवेइयाए एत्था णं एगे महं वणसंडे पण्णत्ते देसूणाई दो जोयणाई विक्खंभेणं वेइयासमएणं परिक्खेवेणं किण्हे किण्होभासे वणसंडवण्णओ मणितणसहविहूणो णेयव्वो, तत्थ णं बहवे वाणमंतरा देवा देवीओ य आसयंति सयंति चिटुंति णिसीयंति तुयटृति रमंति ललंति कीडंति मोहंति पुरा पोराणाणं सुचिण्णाणं सुपरिक्कंताणं सुभाणं कल्लाणाणं कडाणं कम्माणं कल्लाणं फलवित्तिविसेसं पच्चणुब्भवमाणा विहरंति॥१२७॥ ___ भावार्थ - उस जगती के ऊपर और पद्मवरवेदिका के अंदर के भाग में एक बड़ा वनखण्ड कहा गया है जो कुछ कम दो योजन विस्तार वाला वेदिका के समान परिधि वाला है। जो काला और काली प्रभा वाला है इत्यादि वनखण्ड का सारा वर्णन कह देना चाहिए। विशेषता यह है कि यहां तृणों और मणियों के शब्द का वर्णन नहीं कहना चाहिये। यहां बहुत से वाणव्यंतर देव देवियां सुखपूर्वक विश्राम करते हैं, लेटते हैं, खड़े रहते हैं, बैठते हैं, करवट बदलते हैं, रमण करते हैं, इच्छानुसार क्रियाएं करते हैं, क्रीड़ा करते हैं, रतिक्रीड़ा करते हैं और अपने पूर्वभव में किये हुए अच्छे धर्माचरणों का, तपस्या आदि शुभ पराक्रमों का, किये गये शुभ कर्मों का कल्याणकारी फल विपाक का अनुभव करते हुए विचरते हैं। _ विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में पद्मवरवेदिका के पहले और जगती के ऊपर जो वनखण्ड है उसका वर्णन किया गया है जंबूद्वीप के द्वारों का वर्णन जंबुद्दीवस्स णं भंते! दीवस्स कइ दारा पण्णत्ता? गोयमा! चत्तारिदारा पण्णत्ता, तंजहा -विजए वेजयंते जयंते अपराजिए॥१२८॥ भावार्थ - हे भगवन् ! जंबूद्वीप नामक द्वीप के कितने द्वार हैं ? हे गौतम! जंबूद्वीप के चार द्वार हैं। वे इस प्रकार हैं - १. विजय २. वैजयंत ३. जयन्त और ४. अपराजित। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004195
Book TitleJivajivabhigama Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2003
Total Pages422
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy