________________
तृतीय प्रतिपत्ति - वनखण्ड का वर्णन
४१
.
..
चामरों से युक्त ध्वजाएं हैं, लाल वर्ण वाले चामरों से युक्त ध्वजाएं हैं, पीले वर्ण के चामरों से युक्त ध्वजाएं हैं और श्वेत वर्ण वाले चामरों से युक्त ध्वजाएं हैं। ये ध्वजाएं स्वच्छ हैं, मृदु हैं। इन ध्वजाओं के ऊपर का पट्ट चांदी का है, दण्ड वज्ररत्न के हैं, गंध कमल के समान है, ये सुरम्य सुंदर प्रासादिक, दर्शनीय, अभिरूप और प्रतिरूप हैं।
इन तोरणों के ऊपर छत्रातिछत्र-एक के ऊपर दूसरा, दूसरे के ऊपर तीसरा छत्र-इस तरह अनेक छत्र हैं, एक के ऊपर एक, इस तरह अनेक पताकाएं हैं। इन तोरणों पर अनेक घंटायुगल हैं, चामर युगल हैं और अनेक उत्पलहस्तक यावत् शतपत्र-सहस्रपत्र हस्तक-कमलों के समूह हैं। ये सर्व रत्नमय हैं, स्वच्छ हैं यावत् प्रतिरूप हैं। . ___तासि णं खुड्डियाणं वावीणं जाव बिलपंतियाणं तत्थ तत्थ देसे २ तहिं तहिं बहवे उप्पायपव्वया णियइपव्वया जगइपव्वया दारुपव्वयगा दगमंडवगा दगमंचगा दगमालगा दगपासायगा ऊसडा खुल्ला खडहडगा अंदोलगा पक्खंदोलगा सव्वरयणामया अच्छा जाव पडिरूवा। तेसु णं उप्पायपव्वएसु जाव पक्खंदोलएसु बहवे हंसासणाई कोंचासणाइं गरुलासणाई उण्णयासणाइं पणयासणाई दीहासणाई भद्दासणाई पक्खासणाई मगरासणाइं उसभासणाइं सीहासणाई पउमासणाई दिसासोवत्थियासणाई सव्वरयणामयाइं अच्छाई सण्हाई लण्हाइं घट्ठाई मट्ठाई णीरयाई णिम्मलाई णिप्पंकाई णिक्कंकडच्छायाइं सप्पभाई समिरीयाई सउज्जोयाई पासाइयाई दरिसणिज्जाई अभिरूवाइं पडिरूवाइं॥ .
कठिन शब्दार्थ - उप्पायपव्वया - उत्पात पर्वत-जहां देव देवियां क्रीड़ा निमित उत्तरवैक्रिय शरीर की रचना करते हैं, णियइपव्यया - नियति पर्वत-जो वाणव्यंतर देवदेवियों के नियत रूप से भोगने में आते हैं, दगमंडवगा - स्फटिक के मंडप, ऊसडा - ऊंचे, खुल्ला - छोटे, आंदोलगा - आंदोलक (झूले), पक्खंदोलगा - पक्षियों के झूले, हंसासणाई - जिस आसन के नीचे भाग में हंस का चित्र हो। . भावार्थ - उन छोटी बावड़ियों यावत् कूप पंक्तियों में उन उन स्थानों में उन उन भागों में बहुत से उत्पात पर्वत हैं, नियति पर्वत हैं, जगती पर्वत हैं, दारु पर्वत हैं, स्फटिक के मण्डप हैं, स्फटिक रत्न के मंच हैं, स्फटिक के माले हैं, महल हैं जो कोई तो ऊंचे हैं, कोई छोटे हैं कई छोटे किंतु लंबे हैं वहां बहुत से आंदोलक (झूले) हैं, पक्षियों के आंदोलक हैं। ये सर्व रत्नमय हैं, स्वच्छ हैं यावत् प्रतिरूप हैं। . उन उत्पात पर्वतों में यावत् पक्षियों के झूलों में बहुत से हंसासन, क्रोंचासन, गरुडासन, उन्नतासन, प्रणतासन, दीर्घासन, भद्रासन, पथ्यासन, मकरासन, वृषभासन, सिंहासन, पद्मासन और दिशा
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org