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________________ जीवाजीवाभिगम सूत्र स्वस्तिक आसन हैं। ये सब सर्वरत्नमय हैं, स्वच्छ हैं, मृदु हैं, स्निग्ध हैं, घिसे हुए हैं, मंजे हुए हैं, नीरज है, निर्मल हैं, निष्पंक हैं निरुपहतकांति वाले हैं, प्रभामय हैं, किरणों वाले हैं, उद्योत वाले हैं, प्रसन्नता. पैदा करने वाले हैं, दर्शनीय हैं, अभिरूप हैं और प्रतिरूप हैं। तस्स णं वणसंडस्स तत्थ तत्थ देसे २ तहिं तहिं बहवे आलिघरा मालिघरा कलिघरा लयाघरा अच्छणघरा पेच्छणघरा मज्जणघरगा पसाहणघरगा गब्भघरगा मोहणघरगा सालघरगा जालघरगा कुसुमघरगा चित्तघरगा गंधव्वघरगा आयंसघरगा सव्वरयणामया अच्छा सण्हा लण्हा घट्टा मट्ठा णीरया णिम्मला णिप्पंका णिक्कंकडच्छाया सप्पभा समिरीया सउज्जोया पासाईया दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा ॥ तेसु णं आलिघरएसु जाव आयंसघरएसु बहूई हंसासणाई जाव दिसासोवत्थियासणाइं सव्वरयणामयाइं जाव पडिरूवाइं । कठिन शब्दार्थ - आलिघरा आलिगृह-जिन घरों में आलि नामक वनस्पति की प्रधानता है, मालिघरा - मालिगृह - जिन घरों में मालि नामक वनस्पति की प्रचुरता है वे मालिगृह हैं, अच्छणघराअवस्थानगृह- धर्मशाला के समान ऐसे स्थान जहां व्यंतर देव देवियां आकर अपनी इच्छानुसार आनंद से ठहरते हैं, पेच्छणघरा- प्रेक्षणगृह-नाटकघर, मज्जणघरगा स्नानघर, पसाहणघरगा प्रसाधन गृह, गब्भघरगा - गर्भ गृह, मोहणघरगा - मोहनघर - वासभवन - रतिक्रीडार्थ घर, सालघरगा शालागृहपट्टशाला प्रधान घर, गंधव्वघरगा - गंधर्वगृह-गीत नृत्य के अभ्यास योग्य घर, आयंसघरगा आदर्शगृह-दर्पणमय गृह । भावार्थ - उस वनखण्ड के उन उन स्थानों और उन उन भागों में बहुत से आलि घर, मालि घर, कदली घर, लता घर, अवस्थान घर, प्रेक्षण गृह नाटक घर, स्नान घर, प्रसाधन घर, मोहन घर, शाला घर, जालि घर (जालि प्रधान गृह) पुष्प घर, चित्र घर, गंधर्व घर और आदर्श घर हैं। ये सर्व रत्नमय, स्वच्छ यावत् प्रतिरूप हैं। ४२ उन आलि घरों यावत् आदर्श घरों में बहुत से हंसासन यावत् दिशा स्वस्तिक आसन रखे हुए हैं। ये सर्व रत्नमय हैं यावत् प्रतिरूप हैं। तस्स णं वणसंडस्स तत्थ तत्थ देसे २ तर्हि तर्हि बहवे जाइमंडवगा जूहियामंडवगा मल्लियामंडवगा णवमालियामंडवगा वासंतीमंडवगा दधिवासुयामंडवगा सूरिल्लिमंडवगा तंबोलीमंडवगा मुद्दियामंडवगा णागलयामंडवगा अइमुत्तमंडवगा अप्फोयामंडवगा मालुयामंडवगा सामलयामंडवगा (सव्वरयणामया) णिच्चं कुसुमिया णिच्चं जाव पडिरूवा ॥ Jain Education International - For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004195
Book TitleJivajivabhigama Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2003
Total Pages422
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size9 MB
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