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________________ जीवाजीवाभिगम सूत्र आजीनक (मृदुचर्ममयवस्त्र) रुई, बूर वनस्पति, मक्खन, हंस गर्भ तूलिका, शिरीष पुष्प राशि और नवजात कुमुद के पत्रों की राशि का कोमल स्पर्श होता है, क्या उनका स्पर्श ऐसा है ? हे गौतम! यह अर्थ समर्थ नहीं है। उन तृणों और मणियों का स्पर्श इनसे भी इष्टतर, कांततर, प्रियतर, मनोज्ञतर और मनामतर कहा गया है। ___ तेसि णं भंते! तणाणं पुव्वावरदाहिणउत्तरागएहिं वाएहिं मंदायं मंदायं एइयाणं वेइयाणं कंपियाणं खोभियाणं चालियाणं फंदियाणं घट्टियाणं उदीरियाणं केरिसए सद्दे पण्णत्ते? से जहाणामए-सिवियाए वा संदमाणियाए वा रहवरस्स वा सछत्तस्स सज्झयस्स सघंटयस्स सतोरणवरस्स सणंदिघोसस्स सखिंखिणिहेमजालपेरंतपरिखित्तस्स हेमवय( खेत्त )चित्तविचित्ततिणिसकणगणिज्जुत्तदारुयागस्स सुपिणिद्धारयमंडलधुरागस्स कालायससुकयणेमिजंतकम्मस्स आइण्णवरतुरगसुसंपउत्तस्स कुसलणरछेयसारहिसुसंपरिगहियस्स सरसयबत्तीसतोरण( परि )मंडियस्स सकंकडवडिंसगस्स सचावसरपहरणावरणभरियस्स जोहजुद्धसज्जस्स रायंगणंसि वा अंतेउरंसि वा रम्मंसि वा मणिकोट्टिमतलंसि अभिक्खणं २ अभिघट्टिन्जमाणस्स वा णियट्टिजमाणस्स वा (परूढवरतुरंगस्स चंडवेगाइट्ठस्स) ओराला मणुण्णा कण्णमणणिव्वुइकरा सव्वओ समंता सद्दा अभिणिस्सवंति, भवे एयारूवे सिया? णो इणढे समढे, से जहाणामए-वेयालियाए वीणाए उत्तरमंदामुच्छियाए अंके सुपइट्ठियाए चंदणसारकोणपरिघट्टियाए कुसलणरणारिसंपगहियाए पओसपच्चूसकालसमयंसि मंद मंदं एइयाए वेइयाए खोभियाए उदीरियाए ओराला मणुण्णा कण्णमणणिव्वुइकरा सव्वओ समंता सहा अभिणिस्सवंति भवे एयारूवे सिया? ___णो इणढे समढे, से जहाणामए-किण्णराण वा किंपुरिसाण वा महोरगाण वा गंधव्वाण वा भइसालवणगयाण वा णंदणवणगयाण वा सोमणसवणगयाण वा पंडगवणगयाण वा हिमवंतमलयमंदरगिरिगुहसमण्णागयाण वा एगओ सहियाणं संमुहागयाणं समुविट्ठाणं संणिविट्ठाणं पमुइयपक्कीलियाणं गीयरइगंधव्वहरिसियमणाणं गेज्जं पज्जं कत्थं गेयं पयविद्धं पायविद्धं उक्खित्तयं पवत्तयं मंदायं रोइयावसाणं सत्तसरसमण्णागयं अट्ठरससुसंपउत्तं छहोसविप्पमुक्कं एकारसगुणालंकारं अट्ठगुणोववेयं गुंजंतवंसकुहरोवगूढं रत्तं तिट्ठाणकरणसुद्धं महुरं समं सुललियं सकुहरगुंजंतवंसतंती Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004195
Book TitleJivajivabhigama Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2003
Total Pages422
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size9 MB
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