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तृतीय प्रतिपत्ति - वनखण्ड का वर्णन
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(पाडलपुडाण वा) अणुवायंसि उब्भिज्जमाणाण वा णिब्भिज्जमाणाण वा कुट्टिजमाणाण वा रुविज्जमाणाण वा उक्किरिज्जमाणाण वा विकिरिज्जमाणाण वा परिभुज्जमाणाण वा भंडाओ वा भंडं साहरिज्जमाणाणं ओराला मणुण्णा घाणमणणिव्वुइकरा सव्वओ समंता गंधा अभिणिस्सवंति, भवे एयारूवे सिया?
णो इणढे समढे, तेसि णं तणाणं मणीण य एत्तो उ इट्ठतराए चेव जाव मणामतराए चेव गंधे पण्णत्ते।
कठिन शब्दार्थ - कोट्ठपुडाण- कोष्ट (गंध द्रव्य विशेष) पुटों, एलापुडाण - इलाइची के पुटों की, उब्भिज्जमाणाण - उघाड़े जाने पर, णिभिज्जमाणाण - भेदे जाने पर, कुट्टिग्जमाणाण - कूटे जाने पर, रुविज्जमाणाण - छोटे छोटे टुकड़े (खण्ड) किये जाने पर, उक्किरिज्जमाणाण - ऊपर उछाले जाने पर, विकिरिज्जमाणाण - बिखेरे जाने पर, परिभुज्जमाणाण - उपभोग परिभोग किये जाने पर, साहरिजमाणाण - डाले जाने पर, घाणमणणिव्वुइकरा - नाक और मन को तृप्त करने वाली, अभिणिस्सवंति - फैल जाती है ____ भावार्थ - हे भगवन् ! उन तृणों और मणियों की गंध कैसी कही गई है ? जिस प्रकार कोष्टपुटों, पत्रपुटों, चोयपुटों, तगरपुटों, इलायचीपुटों, चंदनपुटों, कुंकुमपुटों, उशीर(खस)पुटों, चंपकपुटों, मरवापुटों, दमनकपुटों, जाति(चमेली)पुटों, जूहीपुटों, मल्लिकापुटों, नवमल्लिकापुटों, वासंतीलतापुटों, केवडापुटों
और कपूर के पुटों को अनुकूल वायु होने पर उघाड़े जाने पर, भेदे जाने पर, कूटे जाने पर, छोटे छोटे खण्ड किये जाने पर, ऊपर उछाले जाने पर, बिखेरे जाने पर, उपभोग परिभोग किये जाने पर और एक बर्तन से दूसरे बर्तन में डाले जाने पर जैसी व्यापक, मनोज्ञ तथा नाक और मन को तृप्त करने वाली गंध निकल कर चारों ओर फैल जाती है। हे भगवन्! क्या उन तृणों और मणियों की गंध ऐसी है? हे गौतम! यह अर्थ समर्थ नहीं है। उन तृणों और मणियों की गंध इससे भी इष्टतर, कांततर, प्रियतर, मनोज्ञतर और मनामतर कही गई है।
तेसि णं भंते! तणाण य मणीण य केरिसए फासे पण्णत्ते? से जहाणामएआईणेइ.वा रूएइ वा बूरेइ वा णवणीएइ वा हंसगब्भतूलीइ वा सिरीसकुसुमणिचएइ वा बालकुमुयपत्तरासीइ वा, भवे एयारूवे सिया? . ___णो इणढे समढे, तेसि णं तणाण य मणीण य एत्तो इट्टतराए चेव जाव फासेणं पण्णत्ते।
भावार्थ - हे भगवन्! उन तृणों और मणियों का स्पर्श कैसा कहा गया है? जिस प्रकार
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