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तृतीय प्रतिपत्ति - वनखण्ड का वर्णन
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भावार्थ - उस वनखण्ड के अंदर अत्यंत सम और रमणीय भूमिभाग है। वह भूमिभाग मुरुज (वाद्य विशेष) के मढे हुए चमड़े के समान समतल है, मृदंग के मढे हुए चमड़े के समान, पानी से भरे सरोवर के तल के समान, हथेली के समान, दर्पण तल के समान, चन्द्रमंडल के समान, सूर्यमंडल के समान, घंटे के चमड़े के समान, बैल के चमड़े के समान, सूअर के चमड़े के समान, सिंह के चमड़े के समान, व्याघ्र चर्म के समान, भेडिये के चर्म के समान और चीते के चर्म के समान समतल है। इन सब पशुओं का चमड़ा जब शंकु प्रमाण हजारों कीलों से खींचा जाता है तह यह बिल्कुल समतल हो जाता है। वह वनखंड आवर्त, प्रत्यावर्त, श्रेणी, प्रश्रेणी, स्वस्तिक सौवस्तिक, पुष्यमाणव, वर्धमानक, मत्स्यंडक, मकरंडक, जारमार लक्षण वाली मणियों, नानाविध पंच वर्ण वाली मणियों, पुष्पावली, पद्म पत्र, सागरतरंग, वासंतीलता, पद्मलता आदि विविध चित्रों से युक्त मणियों और तृणों से सुशोभित है। वे मणियां कांति वाली, किरणों वाली, उद्योत करने वाली और काले यावत् सफेद रूप पांच वर्णों वाली है। इस प्रकार पांच रंग की मणियों और तृणों से यह वनखंड सुशोभित है।
- विवेचन - उस वनखंड का भूमिभाग अत्यंत रमणीय और समतल है। उस भूमिभाग की समतलता बताने के लिये सूत्रकार ने प्रस्तुत सूत्र में विविध उपमाएं दी है। अब उन पांच वर्ण वाली तृणों और मणियों की उपमाओं का वर्णन करते हुए सूत्रकार कहते हैं -
तत्थ णं जे ते किण्हा तणा य मणी य तेसि णं अयमेयारूवे वण्णावासे पण्णत्ते, से जहाणामए-जीमूएइ वा अंजणेइ वा खंजणेइ वा कज्जलेइ वा मसीइ वा गुलियाइ वा गवलेइ वा गवलगुलियाइ वा भमरेइ वा भमरावलियाइ वा भमरपत्तगयसारेइ वा जंबुफलेइ वा अदारिटेइ वा परपुट्ठएइ वा गएइ वा गयकलभेइ वा कण्हसप्पेइ वा कण्हकेसरेइ वा आगासथिग्गलेइ वा कण्हासोएइ वा किण्हकणवीरेइ वा कण्हबंधुजीवएइ वा, भवे एयारूवे सिया? ___ गोयमा! णो इणढे समढे, तेसि णं कण्हाणं तणाणं मणीण य इत्तो इट्ठतराए चेव कंततराए चेव पियतराए चेव मणुण्णतराए चेव मणामतराए चेव वण्णेणं पण्णत्ते।
भावार्थ - उन तृणों और मणियों में जो काले वर्ण के तृण और मणियां हैं उनका वर्णन इस प्रकार कहा गया है - जैसे वर्षाकाल के प्रारंभ में जल भरा बादल हो, सौवीर अंजन अथवा अंजन रत्न हो, खञ्जन हो, काजल हो, काली स्याही हो, धुले हुए काजल की गोली हो, भैंसे का सींग हो, भैंसे के सींग से बनी गोली हो, भंवरा हो, भौरों की पंक्ति हो, भंवरों के पंखों के बीच का स्थान हो, जम्बू का फल हो, गीला अरीठा हो, कोयल हो, हाथी हो, हाथी का बच्चा हो, काला सांप हो, काला बकुल हो, बादलों से मुक्त आकाश खण्ड हो, काला अशोक, काला कनेर और काला बंधुजीव वृक्ष हो। हे
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