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________________ सर्व जीवाभिगम-सर्व जीव दसविध वक्तव्यता ४०१ प्रश्न- हे भगवन्! प्रथम समय तिबंच, प्रथम समय तिथंच रूप में कितने काल तक रहता है ? उत्तर - हे गौतम! प्रथम समय तिथंच उसी रूप में एक समय तक रहता है। प्रश्न- हे भगवन्! अप्रथम समय तिथंच उसी रूप में कितने काल तक रहता है? उत्तर - हे गौतम! अप्रथम समय तियच उसी रूप में जघन्य एक समय कम क्षुल्लक भव ग्रहण और उत्कृष्ट वनस्पतिकाल तक रहता है। प्रश्न - हे भगवन्! प्रथम सबक मनुष्य, प्रथम समय मनुष्य रूप में कितने काल तक रहता है? उत्तर-हे गौतमा एक समय तक प्रथम समय मनुष्य उसी रूप में रहता है। प्रश्न- हे भगवन् ! अप्रथम समय मनुष्य, अप्रथम समय मनुष्य रूप में कितने काल तक ... उत्तर - हे गौतम! अप्रथम समय मनुष्य जघन्य एक समय कम क्षुल्लकभव ग्रहण और उत्कृष्ट पूर्व कोटि पृथक्त्व अधिक तीन पल्योपम तक रहता है। देव का कथन नैरमिकों के समान समझ लेना चाहिये। :: प्रल-हे भगवन् ! प्रथम समय सिद्ध उसी रूप में कितने काल तक रहता है? उत्तर - हे गौतम! एक समय तक रहता है। अप्रथम समय सिद्ध सादि अपर्यवसित होने से सदाकाल उसी रूप में रहता है। • प्रश्न- हे भगवन्! प्रथम समय नैरयिक का अंतर कितने काल का है? उमर - हे गौतम! प्रथम समय नैरयिक का अन्तर जघन्य अंतर्मुहूर्त अधिक दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट वनस्पतिकाल है। अप्रथम समय नैरयिक का अन्तर जघन्य अंतर्मुहूर्त और उत्कृष्ट वनस्पतिकाल हैं। प्रश्न- हे भगवन् ! प्रथम समय तिथंच का अन्तर कितने काल का है? मार-हे मा प्रथम समय तिथंच का अन्तर जघन्य एक समय कम दो क्षुल्लक भव ग्रहण उत्कृष्ट वनस्पतिकाल का है। प्रथम समय तियंत्र का अन्तर जपन्न एक समय अधिक क्षुल्लक भवग्रहण और उत्कृष्ट साधिक सागरोपम शत पृथक्त्व का है। प्रश्न- हे भगवन् ! प्रथम समय मनुमा का अनार कितने काल का? मार- हे गौतम! जय एक समय कम दो क्षुल्ला भाव ग्रहण और उत्कृष्ट वनस्पतिकाल का है। अप्रथम समय मनुष्य का अन्तर जया एक समय अधिक क्षुल्लकभव ग्रहण और उत्कृष्ट वनस्पतिकाल है। देव का अन्तर नैरयिक के समान समझना चाहिये। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004195
Book TitleJivajivabhigama Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2003
Total Pages422
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size9 MB
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