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जीवाजीवाभिगम सूत्र
अपढमसमयणेरइया असंखेजगुणा, एएसि णं भंते! पढमसमयतिरिक्खजो० अपढमसमयतिरिक्खंजोणियाणं कयरे०? गोयमा! सव्व० पढमसमयतिरि० अपढमसमयतिरिक्खजोणिया अणंतगुणा, मणुयदेवअप्पाबहुयं जहा णेरइयाणं।.
एएसि णं भंते! पढमसमयणेरइयाणं पढमसमय तिरिक्खजोणियाणं पढमसमय मणूसाणं पढमसमयदेवाणं अपढमसमयणेरइयाणं अपढमसमयतिरिक्खजोणियाणं अपढमसमयमणूसाणं अपढमसमयदेवाणं सिद्धाण य कयरे०? गोयमा! सव्वत्थोवा पढमसमयमणूसाअपढमसमयमणुस्साअसंखेजगुणापढमसमयणेरइया असंखेजगुणा पढमसमयदेवा असंखेजगुणा पढमसमयतिरिक्खजोणियाणं असंखेजगुणा अपढमसमयणेरइया असंखेजगुणा अपढमसमय देवा असंखेजगुणा सिद्धा अणंतगुणा अपढमसमयतिरिक्खजोणियाअणंतगुणा।सेत्तंणवविहा सव्वजीवापण्णत्ता ॥२७०॥
भावार्थ - अथवा सर्व जीव नौ प्रकार के कहे गये हैं। यथा - प्रथम समय नैरयिक, अप्रथम समय नैरयिक, प्रथम. समय तिर्यंच, अप्रथम समय तिर्यंच, प्रथम समय मनुष्य, अप्रथम समय मनुष्य, प्रथम समय देव, अप्रथम समय देव और सिद्ध।
प्रश्न - हे भगवन्! प्रथम समय नैरयिक, प्रथम समय नैरयिक के रूप में कितने काल तक रहता है?
उत्तर - हे गौतम! प्रथम समय नैरयिक, प्रथम समय नैरयिक के रूप में एक समय रहता है। अप्रथम समय नैरयिक जघन्य एक समय कम दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट से एक समय कम तेतीस सागरोपम तक रहता है। प्रथम समय तिर्यंच एक समय तक और अप्रथम समय तिर्यंच जघन्य एक समय कम क्षुल्लक भव ग्रहण और उत्कृष्ट वनस्पतिकाल तक रहता है। प्रथम समय मनुष्य एक समय और अप्रथम समय मनुष्य जघन्य एक समय कम क्षुल्लकभव ग्रहण और उत्कृष्ट पूर्व कोटि पृथक्त्व अधिक तीन पल्योपम तक रहता है। देव का कथन नैरयिक के समान समझना चाहिये।
प्रश्न - हे भगवन् ! सिद्ध, सिद्ध रूप में कितने काल तक रह सकता है? उत्तर - हे गौतम! सिद्ध सादि अपर्यवसित है। सदा काल उसी रूप में रहता है। प्रश्न- हे भगवन् ! प्रथम समय नैरयिक का अन्तर कितने काल का है?
उत्तर - हे गौतम! प्रथम समय नैरयिक का अन्तर जघन्य अंतर्मुहूर्त अधिक दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट वनस्पतिकाल का है। अप्रथम समय नैरयिक का अन्तर जघन्य अंतर्मुहूर्त और उत्कृष्ट वनस्पतिकाल का है।
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