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________________ सर्व जीवाभिगम-सर्व जीव नवविध वक्तव्यता ३९५ प्रथम समय तिर्यंच का अन्तर जघन्य एक समय कम दो क्षुल्लक भव ग्रहण और उत्कृष्ट वनस्पतिकाल है। अप्रथम समय तिर्यंच का अन्तर जघन्य एक समय अधिक क्षुल्लक भवग्रहण और उत्कृष्ट साधिक सागरोपम शत पृथक्त्व का है। प्रथम समय मनुष्य का अन्तर प्रथम समय तिर्यंच के समान है। अप्रथम समय मनुष्य का अन्तर एक समय अधिक क्षुल्लक भव ग्रहण और उत्कृष्ट वनस्पतिकाल है। प्रथम समय देव का अन्तर प्रथम समय नैरयिक के समान है। अप्रथम समय देव का अन्तर अप्रथम समय नैरयिक के समान है। सिद्ध सादि अपर्यवसित होने से उनका अन्तर नहीं है। ' प्रश्न -हे भगवन्! इन प्रथम समय नैरयिक, प्रथम समय तिर्यंच, प्रथम समय मनुष्य और प्रथम समय देवों में कौन किससे अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक हैं? उत्तर - हे गौतम! सबसे थोड़े प्रथम समय मनुष्य हैं, उनसे प्रथम समय नैरयिक असंख्यातगुणा, उनसे प्रथम समय देव असंख्यातगुणा, उनसे प्रथम समय तिर्यंच असंख्यातगुणा हैं। प्रश्न - हे भगवन्! इन अप्रथम समय नैरयिक, अप्रथम समय तिर्यंच, अप्रथम समय मनुष्य और अप्रथम समय देवों में कौन किससे अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक हैं ? - उसर - हे गौतम! सबसे थोड़े अप्रथम समय मनुष्य हैं, उनसे अप्रथम समय नैरयिक असंख्यातगुणा हैं, उनसे अप्रथम समय देव असंख्यातगुणा हैं और उनसे अप्रथम समय तिर्यंच अनंतगुणा हैं। प्रश्न - हे भगवन् ! इन प्रथम समय नैरयिकों और अप्रथम समय नैरयिकों में कौन किससे अल्प यावत् विशेषाधिक हैं ? उत्तर - हे गौतम! सबसे थोड़े प्रथम समय नैरयिक हैं उनसे अप्रथम समय नैरयिक असंख्यातगुणा हैं।. प्रश्न - हे भगवन्! इन प्रथम समय तिर्यंचों और अप्रथम समय तिर्यंचों में कौन किससे अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक हैं ? उत्तर - हे गौतम! सबसे थोड़े प्रथम समय तिर्यंच हैं उनसे अप्रथम समय तिर्यंच अनंतगुणा हैं। . मनुष्यों और देवों का अल्पबहुत्व नैरयिकों के समान कह देना चाहिये। प्रश्न - हे भगवन्! इन प्रथम समय नैरयिक, प्रथम समय तिर्यंच, प्रथम समय मनुष्य, प्रथम समय देव, अप्रथम समय नैरयिक, अप्रथम समय तिर्यंच, अप्रथम समय मनुष्य, अप्रथम समय देव और सिद्धों में कौन किससे अल्प यावत् विशेषाधिक हैं? . उत्तर - हे गौतम! सबसे थोड़े प्रथम समय मनुष्य, उनसे अप्रथम समय मनुष्य असंख्यातगुणा, उनसे प्रथम समय नैरयिक असंख्यातगुणा, उनसे अप्रथम समय देव असंख्यातगुणा, उनसे प्रथम समय Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004195
Book TitleJivajivabhigama Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2003
Total Pages422
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size9 MB
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