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________________ २२ जीवाजीवाभिगम सूत्र पद्मवरवेदिका का वर्णन तीसे णं जगईए उप्पिं बहुमज्झदेसभाए एत्थ णं एगा महई पउमवरवेइयापण्णत्ता, सा णं पउमवरवेइया अद्धजोयणं उठें उच्चत्तेणं पंच धणुसयाई विक्खंभेणं सव्वरयणामए जगईसमिया परिक्खेवेणं सव्वरयणामई०॥ भावार्थ - उस जगती के ऊपर ठीक मध्य भाग में एक विशाल पद्मवर वेदिका कही गई है। वह पद्मवरवेदिका आधा योजन ऊंची और पांच सौ धनुष विस्तार वाली है। वह सर्वरत्नमय है। उसकी परिधि जगती के मध्य भाग की परिधि के समान है। वह पद्मवरवेदिका सर्व रत्नमय स्वच्छ यावत् अभिरूप प्रतिरूप है। . तीसे णं पउमवरवेइयाए अयमेयारूवे वण्णावासे पण्णत्ते, तं जहा - वरामया णेमा रिट्ठामया पइट्ठाणा वेरुलियामया खंभा सुवण्णरुप्पमया फलगा वइरामया संधी लोहियक्खमईओ सूईओ णाणामणिमया कलेवरा कलेवरसंघाडा णाणामणिमया रूवा णाणामणिमया रूवसंघाडा अंकामया पक्खा पक्खबाहाओ जोइरसामया वंसा वंसकवेल्लुया य रययामईओ पट्टियाओ जायरूवमईओ ओहाडणीओ वइरामईओ उवरि पुञ्छणीओ सव्वसेए रययामए छायणे॥ कठिन शब्दार्थ - वइरामया - वज्ररत्नमय, णेमा - नेम-भूमि भाग के ऊपर निकले हुए प्रदेश, पइट्ठाणा - प्रतिष्ठान-मूलपाद खंभा - स्तम्भ, वेरुलियामया - वैडूर्य रत्न के बने हुए सूईओ - सूचियां, कलेवरा - कलेवर-मनुष्य आदि शरीर के चित्र, रूवसंघाडा - रूप संघाटा:-रूप युग्म ओहाडणीओ - ओहाडणियां-आच्छादन हेतु बनी किमडियां, पुञ्छणीओ - पुंछनियां-निबिड आच्छादन के लिए मुलायम तृण विशेष तुल्य छोटी किमडियां। . ___ भावार्थ - उस पद्मवर वेदिका का वर्णन इस प्रकार कहा गया है - उसके नेम वज्र रत्न के बने हुए हैं, उसके मूलपाद (प्रतिष्ठान) रिष्टरत्न के बने हुए हैं। उसके स्तंभ वैडूर्य रत्न के, फलक सोने चांदी के, संधियां वज्रमय हैं। लोहिताक्ष रत्न की बनी उसकी सूचियां हैं। नाना प्रकार की मणियों से बने हुए मनुष्यादि शरीर के चित्र हैं तथा स्त्री पुरुष युगल के जो चित्र बने हुए हैं वे भी अनेक प्रकार की मणियों से बने हुए हैं। मनुष्य चित्रों के अलावा अनेक जीवों के जो चित्र बने हुए हैं वे भी विविध मणियों के बने हुए हैं। उसके पक्ष-आजू बाजू के भाग-अंक रत्नों के बने हुए हैं। ज्योति रत्न से बने हुए बड़े बड़े पृष्ठ वंश हैं। पृष्ठवंशों को स्थिर रखने के लिए तिरछे रूप में लगाये गये बांस भी ज्योति रत्न के हैं। बांसों के ऊपर छप्पर पर दी जाने वाली लम्बी लकड़ी की पट्टिकाएं चांदी की बनी हुई है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004195
Book TitleJivajivabhigama Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2003
Total Pages422
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size9 MB
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