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________________ ३७० जहा हेट्ठा। अप्पाबहु० सव्वत्थोवा पुरिसवेयगा इत्थिवेयगा संखेज्जगुणा अवेयगा अनंतगुणा णपुंसगवेयगा अनंतगुणा ॥ २५८ ॥ भावार्थ - अथवा सर्व जीव चार प्रकार के कहे गये हैं। वे इस प्रकार हैं- स्त्रीवेदक, पुरुषवेदक, नपुंसकवेदक और अवेदक । जीवाजीवाभिगम सूत्र प्रश्न - हे भगवन् ! स्त्रीवेदक, स्त्रीवेदक रूप में कितने काल तक रह सकता है ? उत्तर - हे गौतम! स्त्रीवेदक, स्त्रीवेदक रूप में जघन्य एक समय और उत्कृष्ट अलग-अलग अपेक्षाओं से क्रमशः एक सौ दस, एक सौ, अठारह, चौदह पल्योपम तथा पल्योपम पृथक्त्व तक रह सकता है। पुरुषवेदक, पुरुषवेदक रूप में जघन्य अंतर्मुहूर्त और उत्कृष्ट साधिक सागरोपम शत पृथक्त्व तक रह सकता है। नपुंसकवेदक जघन्य एक समय उत्कृष्ट अनंतकाल - वनस्पतिकाल तक रह सकता है। अवेदक दो प्रकार के कहे गये हैं । यथा - सादि अपर्यवसित और सादि सपर्यवसित । सादि सपर्यवसित अवेदक जघन्य एक समय और उत्कृष्ट अंतर्मुहूर्त्त तक रह सकता है। स्त्रीवेदक का अन्तर जघन्य अंतर्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट वनस्पतिकाल है । पुरुषवेदक का अन्तर जघन्य एक समय और उत्कृष्ट वनस्पतिकाल है। नपुंसकवेद का अन्तर जघन्य अंतर्मुहूर्त और उत्कृष्ट साधिक सागरोपम शतपृथक्त्व है । अवेदक का जैसा पहले कहा है, अन्तर नहीं है । अल्पबहुत्व में सबसे थोड़े पुरुषवेदक, उनसे स्त्रीवेदक संख्यातगुणा, उनसे अवेदक अनंतगुणा और उनसे नपुंसकवेदक अनंतगुणा हैं। विवेचन प्रस्तुत सूत्र में सर्व जीवों के चार भेद इस प्रकार बताये हैं १. स्त्रीवेदक २. पुरुषवेदक ३. नपुंसकवेदक और ४. अवेदक । इनकी कायस्थिति, अन्तर और अल्पबहुत्व इस प्रकार हैं - Jain Education International कायस्थिति - स्त्रीवेदक की कायस्थिति पांच अपेक्षाओं से कही गई है। १. पहली अपेक्षा से स्त्रीवेदक की कायस्थिति जघन्य एक समय उत्कृष्ट पूर्व कोटि पृथक्त्व अधिक ११० पल्योपम । २. दूसरी अपेक्षा से स्त्रीवेदक की कायस्थिति जघन्य एक समय उत्कृष्ट पूर्वकोटि पृथक्त्व अधिक १०० पल्योपम । ३. तीसरी अपेक्षा से स्त्रीवेदक की कायस्थिति जघन्य एक समय उत्कृष्ट पूर्वकोटि पृथक्त्व अधिक १८ पल्योपम। - For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004195
Book TitleJivajivabhigama Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2003
Total Pages422
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size9 MB
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