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सर्व जीवाभिगम - द्विविध वक्तव्यता
छउमत्थअणाहारगस्स अंतरं जहण्णेणं खुड्डागभवग्गहणं दुसमऊणं उक्कोसेणं असंखेनं कालं जाव अंगुलस्स असंखेज्जइभागं । सिद्धकेवलिअणाहारगस्स साइयस्स अपज्जवसियस्स णत्थि अंतरं ॥ सजोगिभवत्थकेवलिअणाहारगस्स जहणणेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणवि, अजोगिभवत्थकेवलिअणाहारगस्स णत्थि अंतरं ॥
एएसि णं भंते! आहारगाणं अणाहारगाण य कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा बहु० ? गोयमा! सव्वत्थोवा अणाहारगा आहारगा असंखेज्जगुणा ॥ २४७ ॥
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! छद्मस्थ आहारक का अन्तर कितने काल का कहा गया है ?
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उत्तर - हे गौतम! छद्मस्थ आहारक का अन्तर जघन्य एक समय और उत्कृष्ट दो समय का है। केवलि - आहारक का अन्तर अजघन्य अनुत्कृष्ट तीन समय। अनाहारक का अंतर जघन्य दो समय कम क्षुल्लक भव ग्रहण और उत्कृष्ट असंख्यातकाल यावत् अंगुल का असंख्यातवां भाग ।
सिद्ध केवली अनाहारक सादि अपर्यवसित है अतः अन्तर नहीं है । सयोगि भवस्थ केवलि अनाहारक का जघन्य अन्तर अंतर्मुहूर्त और उत्कृष्ट भी अंतर्मुहूर्त्त है। अयोगि भवस्थ केवलि अनाहारक का अन्तर नहीं है।
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प्रश्न हे भगवन् ! इन आहारकों एवं अनाहारकों में कौन किससे अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक हैं ?
उत्तर - हे गौतम! सबसे थोड़े अनाहारक हैं उनसे आहारक असंख्यातगुणा हैं।
विवेचन जितना काल छद्यस्थ अनाहारक का है उतना ही काल छद्मस्थ आहारक का अन्तर
है । इसी प्रकार जितना छद्मस्थ का आहारक काल है उतना ही छद्मस्थ अनाहारक का अन्तर भी है।
.. केवली आहारक का अन्तर अजघन्योत्कृष्ट तीन समय का है ।
केवली आहारक सयोगी भवस्थ केवलि होता है और उसका अनाहारकत्व तीन समय का ही है। केवलि आहारक का अन्तर यही तीन समय का है।
छद्मस्थ अनाहारक का अन्तर जघन्य दो समय कम क्षुल्लक भव है और उत्कृष्ट असंख्यातकाल यावत् अंगुल का असंख्यातवां भाग है सिद्ध केवलि अनाहारक सादि अपर्यवसित होने से उनका अंतर नहीं है। सयोगी भवस्थ केवलि अनाहारक का अंतर जघन्य भी अंतर्मुहूर्त्त है और उत्कृष्ट भी अंतर्मुहूर्त है क्योंकि केवलि समुद्घात के बाद अंतर्मुहूर्त में ही शैलेशी अवस्था हो जाती है। अयोगी भवस्थ केवली अनाहारक का अन्तर नहीं है क्योंकि अयोगी अवस्था में सब अनाहारक ही होते हैं। सिद्धों में भी सादि अपर्यवसित होने से अन्तर नहीं है।
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