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जीवाजीवाभिगम सूत्र
८. कोई कहते हैं कि सर्व जीव नौ प्रकार के हैं - एकेन्द्रिय, बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चउरिन्द्रिय, नैरयिक, तिर्यंच, मनुष्य, देव और सिद्ध।
९. कोई कहते हैं कि सर्व जीव दस प्रकार के हैं - पृथ्वीकायिक, अप्कायिक, तेजस्कायिक, वायुकायिक, वनस्पतिकायिक, बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चउरिन्द्रिय, पंचेन्द्रिय और अनीन्द्रिय। ..
जो ऐसा कहते हैं कि सर्व जीव दो प्रकार के हैं। यथा - सिद्ध और असिद्ध। उनका मानना है कि इन दो भेदों में सभी जीवों का समावेश हो जाता है।
सिद्ध - "सित्तं बद्धमष्टप्रकारं कर्म ध्मातं-भस्मीकृतं यैस्ते सिद्धाः" -
जिन्होंने आठ प्रकार के बंधे हुए कर्मों को भस्मीभूत कर दिया है वे सिद्ध कहलाते हैं यानी जो कर्म बंधनों से सर्वथा मुक्त हो चुके हैं वे सिद्ध हैं।
असिद्ध - जो संसार के एवं कर्म बंधनों से मुक्त नहीं हुए हैं वे असिद्ध कहलाते हैं। सिद्धे णं भंते! सिद्धेत्ति कालओ केवच्चिरं होइ? गोयमा! साइए अपज्जवसिए॥असिद्धे णं भंते! असिद्धेत्ति०?
गोयमा! असिद्धे दुविहे. पण्णत्ते, तंजहा-अणाइए वा अपज्जवसिए, अणाइए वा सपज्जवसिए॥
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! सिद्ध, सिद्ध के रूप में कितने काल तक रह सकता है? उत्तर - हे गौतम! सिद्ध सादि अपर्यवसित है। अतः सदाकाल सिद्ध रूप में रहता है। प्रश्न - हे भगवन् ! असिद्ध, असिद्ध के रूप में कितने काल तक रहता है ?
उत्तर - हे गौतम! असिद्ध दो प्रकार के कहे गये हैं। यथा - अनादि अपर्यवसित और अनादि सपर्यवसित।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में सिद्ध और असिद्ध की कायस्थिति कही गई है। सिद्ध सदाकाल निज स्वरूप में रमण करते रहते हैं अतः उनकी काल मर्यादा रूप भवस्थिति नहीं कही गई है। सिद्धों की कायस्थिति अर्थात् सिद्धत्व के रूप में उनकी स्थिति सदाकाल रहती है। सिद्ध सादि अपर्यवसित है अर्थात् संसार से मुक्ति के समय सिद्धत्व की आदि है और सिद्धत्व से कभी च्युत नहीं होने के कारण अपर्यवसित है।
असिद्ध दो प्रकार के कहे गये हैं - १. अनादि अपर्यवसित और २. अनादि सपर्यवसित। जो अभव्य होने से अथवा तथाविध सामग्री के अभाव से कभी सिद्ध नहीं होगा, वह अनादि अपर्यवसित असिद्ध है। जो सिद्धि को प्राप्त करेगा वह अनादि सपर्यवसित है अर्थात् अनादि संसार का अन्त करने वाला है। जब तक वह मुक्ति प्राप्त नहीं कर लेता तब तक असिद्ध, असिद्ध के रूप में रहता है।
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