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सर्व जीवाभिगम - द्विविध वक्तव्यता
सिद्धस्स णं भंते! केवइकालं अंतरं होइ ? गोयमा ! साइयस्स अपज्जवसियस्स णत्थि अंतरं ॥ असिद्धस्स णं भंते! केवइयं अंतरं होइ ?
गोयमा ! अणाइयस्स अपज्जवसियस्स णत्थि अंतरं, अणाइयस्स सपज्जवसियस्स
णत्थि अंतरं ॥
एएसि णं भंते! सिद्धाणं असिद्धाण य कयरे २.... ?
गोयमा ! सव्वत्थोवा सिद्धा असिद्धा अनंतगुणा ॥ २४४ ॥
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! सिद्ध का अन्तर कितने काल का कहा गया है ?
उत्तर - हे गौतम! सादि अपर्यवसित का अंतर नहीं होता है ।
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प्रश्न - हे भगवन् ! असिद्ध का कितना अन्तर होता है ?
उत्तर - हे गौतम! अनादि अपर्यवसित का अन्तर नहीं है, अनादि सपर्यवसित का अन्तर नहीं है । प्रश्न - हे भगवन्! इन सिद्धों और असिद्धों में कौन किससे अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक हैं ? : उत्तर - हे गौतम! सबसे थोड़े सिद्ध हैं और उनसे असिद्ध अनन्तगुणा हैं।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में सिद्धों और असिद्धों का अन्तर और अल्पबहुत्व कहा गया है। जो इस प्रकार हैं - सिद्ध सादि अपर्यवसित है, सिद्ध सिद्धत्व से च्युत होकर पुनः सिद्ध नहीं बनते अतएव उनमें अन्तर नहीं है। असिद्धों में जो अनादि अपर्यवसित है उनका असिद्धत्व कभी छूटेगा नहीं अतः उनका अन्तर नहीं है। जो अनादि सपर्यवसित है उनका भी मुक्ति से पुनः आना नहीं होता अतः उनका भी अन्तर नहीं है।
. अल्पबहुत्व - सिद्धों से असिद्ध अनंतगुणा हैं क्योंकि निगोद जीव अनन्त हैं । अहवा दुविहा सव्वजीवा पण्णत्ता, तंजहा-सइंदिया चेव अणिंदिया चेव ।
सइंदिए णं भंते! ० कालओ केवच्चिरं होइ ?
गोयमा! सइंदिए दुविहे पण्णत्ते, तंजहा - अणाइए वा अपज्जवसिए अणाइए वा सपज्जवसिए, अणिंदिए साइए वा अपज्जवसिए, दोण्हवि अंतरं णत्थि । सव्वत्थोवा अदिया सइंदिया अणंतगुणा ।
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अहवा दुविहा सव्वजीवा पण्णत्ता, तंजहा - सकाइया चेव अकाइया चेव एवं चेव, एवं सजोगी चेव अजोगी चेव तहेव, ( एवं सलेस्सा चेव अलेस्सा चेव, ससरीरा चेव असरीरा चेव ) संचिट्ठणं अंतरं अप्पाबहुयं जहा सइंदियाणं ॥
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