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________________ सर्व जीवाभिगम ३४३ .. सव्व जीव णव पडिवत्तिओ सर्व जीवाभिगम · नौवीं प्रतिपत्ति में दस प्रकार के संसार समापनक जीवों का वर्णन करने के पश्चात् सूत्रकार अब सर्व जीवाभिगम का कथन करते हैं। इसमें संसार समापनक और असंसार समापनक जीवों का प्रतिपादन किया गया है जिसका प्रथम सूत्र इस प्रकार हैं - से किं तं सव्वजीवाभिगमे? सव्वजीवेसुणं इमाओ णव पडिवत्तीओ एवमाहिजंति एगे एवमाहंसु-दुविहा सव्वजीवा पण्णत्ता जाव दसविहा सव्वजीवा पण्णत्ता॥ सर्व जीव - द्विविध वक्तव्यता तत्थ णं जे ते एवमाहंसु-दुविहा सव्वजीवा पण्णत्ता ते एवमाहंसु, तंजहा-सिद्धा चेव असिद्धा चेव इति॥ भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! सर्व जीवाभिगम का क्या स्वरूप है ? . उत्तर - हे गौतम! सर्व जीवाभिगम में नौ प्रतिपत्तियाँ कही गई हैं। उनसे कोई ऐसा कहते हैं कि सब जीव दो प्रकार के कहे गये हैं यावत् दस प्रकार के कहे गये हैं। - जो दो प्रकार के सर्व जीव कहते हैं वे ऐसा प्रतिपादन करते हैं यथा-सिद्ध और असिद्ध। विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में संसार समापनक जीवों की नौ प्रतिप्रत्तियों की तरह सर्व जीव के विषय में भी नौ प्रतिपत्तियां कही गयी हैं। वे इस प्रकार है - १. कोई कहते हैं कि सर्व जीव दो प्रकार के हैं - सिद्ध और असिद्ध। . .... २. कोई कहते हैं कि सर्व जीव तीन प्रकार के हैं - सम्यग्दृष्टि, मिथ्यादृष्टि और सम्यग् मिथ्यादृष्टि। - ३. कोई कहते हैं कि सर्व जीव चार प्रकार के हैं- मनयोगी, वचनयोगी, काययोगी और अयोगी। . ४. कोई कहते हैं कि सर्व जीव पांच प्रकार के हैं - नैरयिक, तिर्यंच, मनुष्य, देव और सिद्ध। . ५. कोई कहते हैं कि सर्व जीव छह प्रकार के हैं - औदारिक शरीरी, वैक्रियशरीरी, आहारक शरीरी, तैजस शरीरी, कार्मणशरीरी और अशरीरी। ६. कोई कहते हैं कि सर्व जीव सात प्रकार के हैं - पृथ्वीकायिक, अप्कायिक, तेजस्कायिक, वायुकायिक, वनस्पतिकायिक, त्रसकायिक और अकायिक। ७. कोई कहते हैं कि सर्व जीव आठ प्रकार के हैं - मतिज्ञानी, श्रुतज्ञानी, अवधिज्ञानी, मनःपर्यवज्ञानी, केवलज्ञानी, मनअज्ञानी, श्रुतअज्ञानी और विभंगज्ञानी। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004195
Book TitleJivajivabhigama Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2003
Total Pages422
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size9 MB
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