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णवमा दसविहा पडिवत्ती
दशविधाख्या नवम प्रतिपत्ति आठवीं प्रतिपत्ति में नौ प्रकार के संसार समापन्नक जीवों का वर्णन करने के पश्चात् सूत्रकार क्रम प्राप्त इस नौवीं प्रतिपत्ति में दस प्रकार के संसार समापन्नक जीवों का प्रतिपादन करते हैं, जिसका प्रथम सूत्र इस प्रकार है -
तत्थ णं जे ते एवमाहंसु-दसविहा संसारसमावण्णगा जीवा पण्णत्ता ते एवमाहंसु, तंजहा-पढमसमयएगिंदिया अपढमसमयएगिंदिया पढमसमयबेइंदिया अपढमसमयबेइंदिया जाव पढमसमयपंचिंदिया अपढमसमयपंचिंदिया।
पढमसमयएगिंदियस्स णं भंते! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता?
गोयमा! जहण्णेणं एक्कं समयं उक्कोसेणं एक्कं०, अपढमसमयएगिंदियस्स जहण्णेणं खुड्डागं भवग्गहणं समऊणं उक्कोसेणं बावीसं वाससहस्साइं समऊणाइं, एवं सव्वेसिं पढमसमइयकालं जहण्णेणं एक्को समओ उक्कोसेणं एक्को समओ, अपढम० जहण्णेणं खुड्डागं भवग्गहणं समऊणं उक्कोसेणं जाव जस्स ठिई सा समऊणा जाव पंचिंदियाणं तेत्तीसं सागरोवमाइं समऊणाइं॥
भावार्थ - जो आचार्य आदि दस प्रकार के संसार समापन्नक जीवों का कथन करते हैं। वे दस भेद इस प्रकार कहते हैं - १. प्रथम समय एकेन्द्रिय २. अप्रथम समय एकेन्द्रिय ३. प्रथम समय बेइन्द्रिय ४. अप्रथम समय बेइन्द्रिय ५. प्रथम समय तेइन्द्रिय ६. अप्रथम समय तेइन्द्रिय ७. प्रथम समय चउरिन्द्रिय ८. अप्रथम समय चउरिन्द्रिय ९. प्रथम समय पंचेन्द्रिय और १०. अप्रथम समय पंचेन्द्रिय।
प्रश्न - हे भगवन्! प्रथम समय एकेन्द्रिय की स्थिति कितने काल की कही गई है?
उत्तर - हे गौतम! प्रथम समय एकेन्द्रिय की स्थिति जघन्य एक समय और उत्कृष्ट भी एक समय की है।
अप्रथम समय एकेन्द्रिय की स्थिति जघन्य एक समय कम क्षुल्लक भव ग्रहण और उत्कृष्ट एक समय कम बावीस हजार वर्ष की है। इस प्रकार सभी प्रथम समय वालों की स्थिति जघन्य एक समय और उत्कृष्ट भी एक समय कह देनी चाहिये। अप्रथम समय वालों की स्थिति जघन्य एक समय कम क्षुल्लक भव और उत्कृष्ट जिसकी जो स्थिति है उसमें से एक समय कम करके कह देना चाहिये यावत् पंचेन्द्रिय की उत्कृष्ट स्थिति एक समय कम तेतीस सागरोपम की है।
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