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________________ नवम प्रतिपत्ति ३३९ ..........................•••••••••••••••••••••••••••••••••••••• विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में दस प्रकार के संसार समापनक जीव कहे गये हैं। जो एकेन्द्रिय से लगा कर पंचेन्द्रिय तक के जीवों के प्रथम समय और अप्रथम समय रूप दो-दो भेद करने से प्राप्त होते हैं। जो जीव एकेन्द्रियत्व के प्रथम समय में वर्तमान हैं वे प्रथम समय एकेन्द्रिय कहलाते हैं शेष सभी एकेन्द्रिय अप्रथम समय एकेन्द्रिय है। इसी प्रकार शेष भेदों के विषय में भी समझ लेना चाहिये। प्रथम समय एकेन्द्रिय आदि की स्थिति जघन्य एक समय और उत्कृष्ट एक समय की है क्योंकि दूसरे समय में वे प्रथम समय वाले नहीं रहते हैं। अप्रथम समय एकेन्द्रिय आदि की जघन्य उत्कृष्ट स्थिति इस प्रकार है - जघन्य स्थिति उत्कृष्ट स्थिति अप्रथम समय एकेन्द्रिय एक समय कम क्षुल्लकभव एक समय कम बावीस हजार वर्ष अप्रथम समय बेइन्द्रिय एक समय कम क्षुल्लकभव एक समय कम बारह वर्ष अप्रथम समय तेइन्द्रिय एक समय कम क्षुल्लकभव एक समय कम ४९ अहोरात्रि अप्रथम समय चउरिन्द्रिय एक समय कम क्षुल्लकभव एक समय कम छह मास अप्रथम समय पंचेन्द्रिय एक समय कम क्षुल्लकभव एक समय कम तेतीस सागरोपम ____ यहाँ क्षुल्लक भव से आशय २५६ आवलिका प्रमाण है। प्रथम समय से हीन ही अप्रथम समय कहलाता है अतः सर्वत्र एक समय कम कहा है। . संचिट्ठणा पढमसमइयस्स जहण्णेणं एक्कं समयं उक्कोसेणं एक्कं समयं, अपढमसमयगाणं जहण्णेणं खुड्डागं भवग्गहणं समऊणं उक्कोसेणं एगिंदियाणं वणस्सइकालो, बेइंदियतेइंदियचउरिदियाणं संखेजंकालं पंचेंदियाणं सागरोवमसहस्सं साइरेगं॥ __भावार्थ - प्रथम समय वाले एकेन्द्रिय आदि की संचिट्ठणा जघन्य एक समय और उत्कृष्ट भी एक समय है। अप्रथम समय वालों की संचिट्ठणा जघन्य एक समय कम क्षुल्लक भवग्रहण और उत्कृष्ट एकेन्द्रियों की वनस्पतिकाल बेइन्द्रिय-तेइन्द्रिय और चउरिन्द्रियों की संख्यातकाल तथा पंचेन्द्रियों की साधिक (कुछ अधिक) हजार सागरोपम की संचिट्ठणा है। विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में दस प्रकार के संसारी जीवों की संचिट्ठणा (कायस्थिति) का कथन किया गया है। प्रथम समय एकेन्द्रिय आदि की कायस्थिति जघन्य उत्कृष्ट एक समय की है क्योंकि प्रथम समय एकेन्द्रिय आदि एक समय तक उसी रूप में रहते हैं। इसके बाद वे प्रथम समय वाले नहीं रहते। अप्रथम समय एकेन्द्रिय की कायस्थिति जघन्य एक समय कम क्षुल्लक भव है इतने समय पश्चात् वह अन्यत्र उत्पन्न हो सकता है उत्कृष्ट अनंतकाल की कायस्थिति है। अप्रथम समय बेइन्द्रिय, अप्रथमसमय तेइन्द्रिय और अप्रथमसमय चउरिन्द्रिय की संचिट्ठणा जघन्य एक समय कम क्षुल्लक भव Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004195
Book TitleJivajivabhigama Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2003
Total Pages422
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size9 MB
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