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________________ पंचम प्रतिपत्ति - अल्प बहुत्व ३११ CIP अंतर अंतरं बायरस्स बायरवणस्सइस्स णिओयस्स बायरणिओयस्स एएसिं चउण्हवि पुढविकालो जाव असंखेजा लोया, सेसाणं वणस्सइकालो। एवं पजत्तगाणं अपज्जत्तगाणवि अंतरं, ओहे य बायरतरु ओघणिओए य बायरणिओए य। कालमसंखेजंतरं सेसाण वणस्सइकालो॥१॥२३६॥ भावार्थ - बादर (औधिक-सामान्य), बादर वनस्पति, निगोद और बादर निगोद इन चारों का अन्तर पृथ्वीकाल यावत् असंख्यात लोक प्रमाण है। शेष सभी (बादर पृथ्वीकायिक, बादर अप्कायिक, बादर तेजस्कायिक, बादर वायुकायिक प्रत्येक बादर वनस्पतिकायिक और बादर त्रसकायिक) का अन्तर वनस्पतिकाल का है। इसी प्रकार अपर्याप्तकों एवं पर्याप्तकों का अंतर भी समझ लेना चाहिये। गाथा का अर्थ - औधिक बादर, बादर वनस्पति, औधिक निगोद और बादर निगोद का अंतर असंख्यात काल है और शेष सभी का अंतर वनस्पतिकाल का है। अल्प बहुत्व - अप्पाबहुयं सव्वत्थोवा बायरतसकाइया बायरतेउकाइया असंखेजगुणा पत्तेयसरीरबायरवणस्सइ० असंखेजगुणा बायरणिओया असंखे० बायरपुढवि० असंखे० बायर आउवाउ० असंखेजगुणा बायरवणस्सइकाइया अणंतगुणा बायरा विसेसाहिया १॥ . भावार्थ - अल्पबहुत्व-सबसे थोड़े बादर त्रसकायिक, उनसे बादर तेजस्कायिक असंख्यातगुमा, -उनसे प्रत्येक शरीर बादर वनस्पतिकायिक असंख्यातगुणा, उनसे बादर निगोद असंख्यातगुणा, उनसे बादर पृथ्वीकायिक असंख्यातगुणा, बादर अप्कायिक, बादर वायुकायिक क्रमश: असंख्यातगुणा उनसे बादर वनस्पतिकायिक अनन्तगुणा और उनसे बादर विशेषाधिक हैं। - विवेचन - छह कायों का प्रथम सामान्य अल्प बहुल्व इस प्रकार है - सबसे थोड़े बादर त्रसकायिक हैं क्योंकि बेइन्द्रिय आदि त्रस शेष जीवों की अपेक्षा थोड़े हैं। उनसे बादर तेजस्कायिक असंख्यातगुणा हैं क्योंकि वे असंख्यात लोकाकाश प्रदेश प्रमाण है। उनसे प्रत्येक शरीर बादर वनस्पतिकायिक असंख्यातगुणा हैं क्योंकि इनके स्थान असंख्यातगुणा हैं। बादर तेजस्कायिक तो मनुष्य क्षेत्र में ही है जबकि बादर वनस्पतिकायिक तीनों लोकों में हैं अतः तेजस्कायिकों से प्रत्येक शरीरी बादर वनस्पतिकायिक Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004195
Book TitleJivajivabhigama Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2003
Total Pages422
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size9 MB
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