________________
३१०
जीवाजीवाभिगम सूत्र
उस्सप्पिणि ओसिप्पिणि स्स अड्ढाइयपोग्गलाण परियट्टा। बेउयहिसहस्सा खलु साहिया होंति तसकाए॥२॥ अंतोमुहुत्तकालो होइ अपज्जत्तगाण सव्वेसिं॥ पज्जत्तबायरस्स य बायरतसकाइयस्सावि॥३॥ एएसिं ठिई सागरोवमसयपुहुत्तं साइरेगं। तेउस्स संख राई( दिया) दुविहणिओए मुहुत्तमद्धं तु। सेसाणं संखेज्जा वाससहस्सा य सव्वेसिं॥४॥॥२३५॥ . भावार्थ - प्रश्न -हे भगवन्! बादर जीव, बादर के रूप में कितने काल तक रहता है।
उत्तर - हे गौतम! बादर जीव जघन्य अंतर्मुहूर्त और उत्कृष्ट से असंख्यातकाल तक बादर के रूप में रहता है। यह असंख्यातकाल काल से असंख्यात उत्सर्पिणी अवसर्पिणी प्रमाण तथा क्षेत्र से अंगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण है। बादर पृथ्वीकायिक, बादर अप्कायिक, बादर तेजस्कायिक, बादर वायुकायिक, प्रत्येक शरीर बादर वनस्पतिकायिक और बादर निगोद की कायस्थिति जघन्य अंतर्मुहूर्त उत्कृष्ट सत्तर कोडाकोडी सागरोपम की है।
सामान्य बादर वनस्पतिकायिक की कायस्थिति जघन्य अंतर्मुहूर्त और उत्कृष्ट असंख्यातकाल की है। यह असंख्यातकाल काल से असंख्यात उत्सर्पिणी असंख्यात अवसर्पिणी रूप है तथा क्षेत्र से अंगुल के असंख्यातवें भाग में जितने प्रदेश हैं उन प्रदेशों को प्रतिसमय एक-एक आकाश प्रदेश के मान से वहाँ से खाली करने में जितना समय लगता है उसके बराबर है। प्रत्येक बादर वनस्पति की कायस्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट ७० कोड़ाकोड़ी सागरोपम की है। सामान्य निगोद की कायस्थिति जघन्य अंतर्मुहूर्त उत्कृष्ट अनंतकाल की है। इस अनंतकाल में अनंत उत्सर्पिणियां और अनंत अवसर्पिणियां व्यतीत हो जाती है। क्षेत्र से ढाई पुद्गल परावर्तन व्यतीत हो जाते हैं। बादर निगोद की कायस्थिति जघन्य अंतर्मुहूर्त उत्कृष्ट ७० कोडाकोडी सागरोपम है। बादर त्रसकाय की कायस्थिति जघन्य अंतर्मुहूर्त और उत्कृष्ट से संख्यातवर्ष अधिक दो हजार सागरोपम की है।
___ बादर अपर्याप्तक की कायस्थिति जघन्य अंतर्मुहूर्त और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की है। बादर पर्याप्तक और बादर त्रसकायिक की कायस्थिति जघन्य अंतर्मुहूर्त और उत्कृष्ट साधिक (कुछ अधिक) सागरोपम शत पृथक्त्व है। बादर तेजस्कायिक की कायस्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट संख्यात अहोरात्रि की है। निगोद (पर्याप्तक और अपर्याप्तक) की कायस्थिति जघन्य अंतर्मुहर्त और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की है। शेष सभी (बादर पृथ्वीकायिक, बादर अप्कायिक, बादर वायुकायिक, बादर वनस्पतिकायिक, प्रत्येक बादर वनस्पतिकायिक) की कायस्थिति जघन्य अंतर्मुहूर्त और उत्कृष्ट संख्यात हजार वर्ष की होती है।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org