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पंचम प्रतिपत्ति - कायस्थिति
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बादर जीवों का स्वरूप बायरस्स णं भंते! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता?
गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता, एवं बायरतसकाइयस्सवि, बायरपुढविकाइयस्स बावीसवाससहस्साई, बायरआउस्स सत्तवाससहस्सं, बायरतेउस्स तिण्णि राइंदिया, बायरवाउस्स तिणि वाससहस्साई, बायरवण० दसवाससहस्साइं, एवं पत्तेयसरीरबायरस्सवि, णिओयस्स जहण्णेणवि उक्कोसेणवि अंतोमुहत्तं, एवं बायरणिओयस्सवि, अपजत्तगाणं सव्वेसिं अंतोमुहुत्तं, पजत्तगाणं उक्कोसिया ठिई अंतोमुत्तूणा कायव्वा सव्वेसिं॥२३४॥
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! बादर की स्थिति कितने काल की कही गई है?
उत्तर - हे गौतम! बादर की स्थिति जघन्य अंतर्मुहूर्त और उत्कृष्ट तेतीस सागरोपम की है। यही स्थिति बादर त्रसकाय की भी है। बादर पृथ्वीकायिक की स्थिति बावीस हजार वर्ष की, बादर अपकायिक की स्थिति सात हजार वर्ष की, बादर तेजस्काय की तीन अहोरात्रि की, बादर वायुकायिक की तीन हजार वर्ष की और बादर वनस्पतिकाय की दस हजार वर्ष की स्थिति है। इसी तरह प्रत्येक शरीर बादर की भी स्थिति है।
निगोद की जघन्य और उत्कृष्ट स्थिति अंतर्मुहूर्त की है। बादर निगोद की स्थिति भी इतनी ही है। सभी अपर्याप्त बादरों की स्थिति अंतर्मुहूर्त है और सभी पर्याप्तों की उत्कृष्ट स्थिति कुल स्थिति में से • अंतर्मुहूर्त कम करके कह देनी चाहिये।
कायस्थिति . बायरे णं भंते! बायरेत्ति कालओ केवच्चिरं होइ?
गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं असंखेनं कालं असंखेजाओ उस्सप्पिणीओसप्पिणीओ कालओ, खेत्तओ अंगुलस्स असंखेजइभागो, बायरपुढविकाइयआउतेउवाउ० पत्तेयसरीरबायरवणस्सइकाइयस्स बायरणिओयस्स एएसिं जहण्णेणं अंतोमुहत्तं उक्कोसेणं सत्तरि सागरोवमकोडाकोडीओ
संखाईयाओ समाओ अंगुलभागो तहा असंखेजा। आहे य बायरतरुअणुबंधो सेसओ वोच्छं॥१॥
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