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चतुर्थ प्रतिपत्ति - अल्पबहुत्व
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अल्पबहुत्व एएसि णं भंते! एगिदियाणं बेइंदियाणं तेइंदियाणं चउरिदियाणं पंचिंदियाणं कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा?
- गोयमा! सव्वत्थोवा पंचेंदिया चउरिदिया विसेसाहिया तेइंदिया विसेसाहिया बेइंदिया विसेसाहिया एगिंदिया अणंतगुणा। एवं अपजत्तगाणं सव्वत्थोवा पंचेंदिया अपजत्तगा चउरिदिया अपजत्तगा विसेसाहिया तेइंदिया अपज्जत्तगा विसेसाहिया बेइंदिया अपज्जत्तगा विसेसाहिया एगिंदिया अपज्जत्तगा अणंतगुणा सइंदिया अपज्जत्तगा विसेसाहिया॥ सव्वत्थोवा चउरिदिया पज्जत्तगा पंचेंदिया पजत्तगा विसेसाहिया, बेइंदियपज्जत्तगा विसेसाहिया, तेइंदियपजत्तगा विसेसाहिया, एगिंदियपज्जत्तगा अणंतगुणा, सइंदिया पजत्तगा विसेसाहिया॥
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! इन एकेन्द्रिय, बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चउरिन्द्रिय और पंचेन्द्रियों में कौन किससे अल्प, बहुत; तुल्य या विशेषाधिक हैं ?
उत्तर - हे गौतम! सबसे थोड़े पंचेन्द्रिय हैं उनसे चउरिन्द्रिय विशेषाधिक हैं उनसे तेइन्द्रिय विशेषाधिक हैं, उनसे बेइन्द्रिय विशेषाधिक हैं और उनसे एकेन्द्रिय अनन्तगुण हैं। इसी प्रकार अपर्याप्तकों में सबसे थोड़े पंचेन्द्रिय अपर्याप्तक, उनसे चउरिन्द्रिय अपर्याप्तक विशेषाधिक, उनसे तेइन्द्रिय अपर्याप्तक विशेषाधिक उनसे बेइन्द्रिय अपर्याप्तक विशेषाधिक, उनसे एकेन्द्रिय अपर्याप्तक अनंतगुणा हैं और उनसे सेन्द्रिय अपर्याप्तक विशेषाधिक हैं। इसी प्रकार पर्याप्तकों में सबसे थोड़े चउरिन्द्रिय पर्याप्तक, उनसे पंचेन्द्रिय पर्याप्तक विशेषाधिक, उनसे बेइन्द्रिय पर्याप्तक विशेषाधिक, उनसे तेइन्द्रिय पर्याप्तक विशेषाधिक, उनसे एकेन्द्रिय पर्याप्तक अनंतगुण हैं। उनसे सेन्द्रिय पर्याप्तक विशेषाधिक हैं।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में एकेन्द्रिय आदि का सामान्य अल्प बहुत्व, अपर्याप्तक एकेन्द्रिय आदि का अल्प बहुत्व और पर्याप्त एकेन्द्रिय आदि का अल्पबहुत्व कहा गया है जिसका स्पष्टीकरण इस प्रकार है -
१. सामान्य अल्पबहुत्व - सबसे थोड़े पंचेन्द्रिय हैं क्योंकि ये संख्यात योजन कोटाकोटि प्रमाण विष्कंभ सूची से प्रमित प्रतर के असंख्यातवें भाग में रही हुई असंख्य श्रेणियों के आकाश प्रदेशों के बराबर हैं। उनसे चउरिन्द्रिय विशेषाधिक हैं क्योंकि ये प्रभूत संख्यात योजन कोटाकोटि प्रमाण विष्कंभ सूची के प्रतर के असंख्यातवें भाग में रही हुई श्रेणियों के आकाश प्रदेशों के बराबर हैं। उनसे तेइन्द्रिय विशेषाधिक हैं क्योंकि ये प्रभूततर संख्यात कोटिकोटि प्रमाण विष्कंभसूची के प्रतर के असंख्यातवें भाग में रही हुई श्रेणियों के आकाश प्रदेश राशि प्रमाण है। उनसे बेइन्द्रिय विशेषाधिक हैं क्योंकि प्रभूततम ,
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