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जीवाजीवाभिगम सूत्र orrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrr....................resort
- पर्याप्तक बेइन्द्रिय की कायस्थिति संख्यात वर्षों की कही गई है क्योंकि बेइन्द्रिय की उत्कृष्ट भव स्थिति बारह वर्ष की है। सब भवों में तो उत्कृष्ट स्थिति होती नहीं अतः कुछ निरन्तर पर्याप्त भवों को जोड़ने से संख्यात वर्ष ही होते हैं, सौ वर्ष या हजार वर्ष नहीं। पर्याप्त तेइन्द्रिय की कायस्थिति संख्यात अहोरात्रि की है क्योंकि उनकी भवस्थिति ४९ दिनरात की है और कतिपय निरन्तर पर्याप्त भवों को जोड़ने पर संख्यात अहोरात्रि ही होते हैं। पर्याप्त चउरिन्द्रिय की कायस्थिति संख्यात मास कही है क्योंकि उनकी भवस्थिति उत्कृष्ट छह मास है और कतिपय निरन्तर पर्याप्त भवों को मिलाने से संख्यात-मास ही होते हैं। पर्याप्त पंचेन्द्रिय की कायस्थिति कुछ अधिक सागरोपम शत पृथक्त्व की है क्योंकि नैरयिक, तिर्यंच, मनुष्य और देव भवों में पर्याप्त पंचेन्द्रिय के रूप में जीव इतने काल तक ही रह सकता है।
. अंतर एगिंदियस्स णं भंते! केवइयं कालं अंतरं होइ?
गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं दो सागरोवमसहस्साई संखेजवासमब्भहियाइं।
बेइंदियस्स णं० अंतरं कालओ केवच्चिरं होइ? गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं उक्कोसेणं वणस्सइकालो, एवं तेइंदियस्स चउरिदियस्स पंचेंदियस्स, अपज्जत्तगाणं एवं चेव, पज्जत्तगाणवि एवं चेव ॥२२४॥
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! एकेन्द्रिय का अंतर कितना कहा गया है ?
उत्तर - हे गौतम! एकेन्द्रिय का अंतर जघन्य अंतर्मुहूर्त और उत्कृष्ट दो हजार सागरोपम और संख्यात वर्ष अधिक का है।
प्रश्न - हे भगवन्! बेइन्द्रिय का अंतर कितना कहा गया है ? '
उत्तर - हे गौतम! बेइन्द्रिय का अंतर जघन्य अंतर्मुहूर्त और उत्कृष्ट वनस्पतिकाल है। इसी प्रकार तेइन्द्रिय, चउरिन्द्रिय और पंचेन्द्रिय तथा अपर्याप्तक और पर्याप्तक का भी अंतर कह देना चाहिये।
विवेचन - एकेन्द्रिय से निकल कर बेइन्द्रिय आदि में अंतर्मुहूर्त काल रह कर पुनः एकेन्द्रिय में उत्पन्न होने की अपेक्षा एकेन्द्रिय का जघन्य अंतर अंतर्मुहूर्त कहा गया है। एकेन्द्रिय का उत्कृष्ट अंतर त्रस की कायस्थिति के बराबर अर्थात् संख्यात वर्ष अधिक दो हजार सागरोपम है।
बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चउरिन्द्रिय और पंचेन्द्रिय का अंतर जघन्य अंतर्मुहूर्त और उत्कृष्ट वनस्पतिकाल है। जो बेइन्द्रिय आदि से निकल कर वनस्पति में रहने के बाद पुन: बेइन्द्रिय आदि में उत्पन्न होने की अपेक्षा समझना चाहिये। इसी प्रकार पर्याप्तक और अपर्याप्तक का अंतर भी होता है।
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