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जीवाजीवाभिगम सूत्र
विवेचन - यहाँ मनुष्य लोक में मनुष्यों के जैसे घर में साधारण वेश होता है किन्तु घर से बाहर जाने के लिए सुन्दर अलंकार युक्त वेश होता है उसी प्रकार देवों के भी जिस किसी प्रयोजन से वैक्रिय शरीर करने पर वह अलंकार आभूषण से युक्त सुन्दर होता है किन्तु जो भवधारणीय शरीर होता है वह विभूषा से रहित प्रकृतिस्थ (अश्रृंगारिक) होता है।
वैमानिक देवियों की विभूषा
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सोहम्मीसाणेसु णं भंते! कप्पेसु देवीओ केरिसियाओ विभूसाए पण्णत्ताओ ? गोयमा! दुविहाओ पण्णत्ताओ, तंजहा- वेउव्वियसरीराओ य अवेउव्विय सरीराओ य, तत्थ णं जाओ वेडव्वियसरीराओ ताओ सुवण्णसद्दालाओ सुवण्णसद्दालाई कत्थाई पवरपरिहियाओ चंदाणणाओ चंदविलासिणीओ चंदद्धसमणिडालाओ सिंगारागारचारुवेसाओ संगय जाव पासाइयाओ जाव पडिरूवाओ, तत्थ णं जाओ अवेउव्वियसरीराओ ताओ णं आभरणवसणरहियाओ पगइत्थाओ विभूसाए पण्णत्ताओ, सेसेसु देवा देवीओ णत्थि जाव अच्चुओ, गेवेज्जगदेवा० केरिसया विभूसाए० ? गोयमा ! आभरणवसणरहिया, एवं देवी णत्थि भाणियव्वं, पगइत्था विभूसाए पण्णत्ता, एवं अणुत्तरावि ॥ २९८ ॥
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! सौधर्म ईशान कल्प की देवियाँ विभूषा से कैसी लगती है ?
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उत्तर - हे गौतम! वे दो प्रकार की हैं - १. वैक्रिय शरीर वाली और २. अवैक्रिय शरीर वाली । उनमें जो वैक्रिय शरीर वाली हैं वे सोने के नूपुर आदि आभूषणों की ध्वनि से युक्त हैं तथा सोने की बजती हुई किंकिणियों वाले सुंदर वस्त्रों को पहनी हुई हैं, चन्द्रमा के समान उनका मुख मण्डल है, वे चन्द्र के समान विलास वाली और अर्द्ध चन्द्र के समान भाल वाली हैं वे शृंगार की साक्षात् मूर्ति हैं और सुन्दर परिधान वाली है वे सुन्दर यावत् दर्शनीय, अभिरूप और प्रतिरूप हैं । उनमें जो अवैक्रिय शरीर वाली हैं वे आभूषणों और वस्त्रों से रहित स्वाभाविक विभूषा से संपन्न कही गई है। सौधर्म और ईशान को छोड़ कर शेष देवलोकों में देव ही हैं, देवियाँ नहीं, अतः अच्युत कल्प तक के देवों की विभूषा का वर्णन उपरोक्तानुसार ही समझना चाहिए।
प्रश्न - हे भगवन् ! ग्रैवेयक देवों की विभूषा कैसी है ?
उत्तर - हे गौतम! ग्रैवेयक देव आभरण और वस्त्रों की विभूषा से रहित हैं किन्तु स्वाभाविक विभूषा से संपन्न हैं। वहाँ देवियाँ नहीं हैं। इसी प्रकार अनुत्तर विमान के देवों की विभूषा का कथन कर लेना चाहिए।
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