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तृतीय प्रतिपत्ति - वैमानिक देवों की विभूषा
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भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! सौधर्म-ईशान कल्प के देव किस प्रकार सातासुख का अनुभव करते हुए विचरते हैं?
उत्तर - हे गौतम! वे देव मनोज्ञ शब्द यावत् मनोज्ञ स्पर्शों द्वारा सुख का अनुभव करते हुए विचरते हैं यावत् ग्रैवेयक देवों तक इसी प्रकार समझना चाहिए। अनुत्तरौपपातिक देव अनुत्तर (सर्वश्रेष्ठ) शब्द यावत् मनोज्ञ स्पर्शजन्य सुखों का अनुभव करते हुए विचरते हैं।
वैमानिक देवों की ऋद्धि सोहम्मीसाणेसु० देवाणं केरिसया इड्डी पण्णत्ता?
गोयमा! महिड्डिया महज्जुइया जाव महाणुभागा इड्डीए पण्णत्ता जाव अच्चुओ, गेवेजणुत्तरा य सव्वे महिड्डिया जाव सव्वे महाणुभागा अणिंदा जाव अहमिंदा णामं ते देवगणा पण्णत्ता समणाउसो! ॥२१७॥ _भावार्थ-प्रश्न- हे भगवन् ! सौधर्म-ईशान कल्प के देवों की ऋद्धि किस प्रकार की कही गई है?
उत्तर - हे गौतम! वे देव महान् ऋद्धि वाले, महान् द्युति वाले यावत् महाप्रभावशाली ऋद्धि से युक्त है। इस प्रकार अच्युत कल्प के देवों तक समझ लेना चाहिये।
ग्रैवेयक और अनुत्तर विमानों में सभी देव महान् ऋद्धि वाले यावत् महाप्रभावशाली हैं। वहाँ कोई इन्द्र नहीं हैं। वे सब अहमिन्द्र हैं, वहाँ छोटे बड़े का कोई भेद नहीं हैं। हे आयुष्मन् श्रमण! वे देव अहमिन्द्र कहलाते हैं।
वैमानिक देवों की विभूषा 'सोहम्मीसाणा० देवा केरिसया विभूसाए पण्णत्ता?
गोयमा! दुविहा पण्णत्ता, तंजहा-वेउब्वियसरीरा य अवेउव्वियसरीरा य, तत्थ णं जे ते वेउब्वियसरीरा ते हारविराइयवच्छा जाव दस दिसाओ उज्जोवेमाणा पभासेमाणा जाव पडिरूवा, तत्थ णं जे ते अवेउव्वियसरीरा ते णं आभरणवसणरहिया पगइत्था विभूसाए पण्णत्ता॥ ... भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! सौधर्म ईशान कल्प के देव विभूषा से कैसे लगते हैं ?
उत्तर - हे गौतम! सौधर्म ईशान कल्प के देव दो प्रकार के कहे गये हैं - १. वैक्रिय शरीर (उत्तर वैक्रिय) वाले और २. अवैक्रिय शरीर (भवधारणीय शरीर) वाले। उनमें जो वैक्रिय शरीरी हैं वे हारों से सुशोभित वक्षस्थल वाले यावत् प्रतिरूप हैं, जो अवैक्रिय शरीर वाले हैं वे आभरण और वस्त्रों से रहित हैं और स्वाभाविक विभूषा से संपन्न हैं।
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