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तृतीय प्रतिपत्ति - वैमानिक देवों की स्थिति और उद्वर्तना
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वैमानिक देवों में कामभोग सोहम्मीसाणेसु० देवा केरिसए कामभोगे पच्चणुब्भवमाणा विहरंति?
गोयमा! इट्टा सद्दा इट्ठा रूवा जाव फासा, एवं जाव गेवज्जा, अणुत्तरोववाइयाणं अणुत्तरा सदा जाव अणुत्तरा फासा॥२१९॥
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! सौधर्म ईशान कल्प में देव कैसे कामभोगों का अनुभव करते हुए विचरते हैं?
उत्तर - हे गौतम! सौधर्म ईशान कल्प में देव इष्ट शब्द, इष्ट रूप यावत् इष्ट स्पर्श जन्य सुखों का अनुभव करते हुए विचरते हैं। इसी प्रकार यावत् ग्रैवेयक देवों तक कह देना चाहिए। अनुत्तर विमान के देव अनुत्तर शब्द यावत् अनुत्तर स्पर्शजन्य सुख का अनुभव करते हैं।
वैमानिक देवों की स्थिति और उद्वर्तना ठिई सव्वेसिं भाणियव्वा, देवित्ताएवि, अणंतरं चयंति चइत्ता जे जहिं गच्छंति तं भाणियव्वं ॥२२०॥ ___भावार्थ - सभी वैमानिक देवों और देवियों की स्थिति कह देनी चाहिये तथा देवभव से चव कर कहां उत्पन्न होते हैं - यह उद्वर्तना द्वार कहना चाहिये।
विवेचन - वैमानिक देवों की स्थिति और उद्वर्तना इस प्रकार है -
१. स्थिति - वैमानिक देवों की जघन्य स्थिति एक पल्योपम उत्कृष्ट तेतीस सागरोपम की है। अलग-अलग देवों की जघन्य और उत्कृष्ट स्थिति इस प्रकार है -
१. सौधर्म देवलोक में देवों की स्थिति जघन्य एक पल्योपम और उत्कृष्ट दो सागरोपम। परिगृहीता देवियों की स्थिति जघन्य एक पल्योपम और उत्कृष्ट सात पल्योपम की तथा अपरिगृहीता देवियों की स्थिति जघन्य एक पल्योपम उत्कृष्ट पचास पल्योपम की है।
२. ईशान देवलोक में देवों की स्थिति जघन्य एक पल्योपम झाझेरी और उत्कृष्ट दो सागरोपम झाझेरी। परिगृहीता देवियों की स्थिति जघन्य एक पल्योपम झाझेरी और उत्कृष्ट नव पल्योपम की है। अपरिगृहीता देवियों की स्थिति जघन्य एक पल्योपम झाझेरी और उत्कृष्ट पचपन पल्योपम की है।
३. सनत्कुमार देवलोक में देवों की स्थिति जघन्य दो सागरोपम और उत्कृष्ट ७ सागरोपम ४. माहेन्द्रकुमार देवलोक में देवों की स्थिति जघन्य दो सागरोपम झाझेरी उत्कृष्ट ७ सागरोपम झाझेरी ५. ब्रह्मलोक देवलोक में देवों की स्थिति जघन्य सात सागरोपम और उत्कृष्ट दस सागरोपम ६. लान्तक देवलोक में देवों की जघन्य दस सागरोपम और उत्कृष्ट चौदह सागरोपम
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