________________
तृतीय प्रतिपत्ति - वैमानिक देवों का अवधि क्षेत्र
२८१ .000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000
वैमानिक देवों में ज्ञान-अज्ञान आदि सोहम्मीसाणा० किं णाणी अण्णाणी?
गोयमा! दोवि, तिणि णाणा तिणि अण्णाणा णियमा जाव गेवेज्जा, अणुत्तरोववाइया णाणी णो अण्णाणी तिण्णि णाणा णियमा। तिविहे जोगे, दुविहे उवओगे सव्वेसिं जाव अणुत्तरोववाइया॥२१५॥
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! सौधर्म ईशान कल्प के देव ज्ञानी हैं या अज्ञानी हैं?
उत्तर - हे गौतम! वे दोनों प्रकार के हैं। उनमें जो ज्ञानी हैं वे नियम से तीन ज्ञान वाले हैं और जो अज्ञानी हैं वे नियम से तीन अज्ञान वाले हैं। यह कथन ग्रैवेयक देवों तक कह देना चाहिये। अनुत्तरौपपातिक देव ज्ञानी ही हैं, अज्ञानी नहीं। उनमें तीन ज्ञान नियम से होते हैं। इसी प्रकार देवी में तीन योग और दो उपयोग समझने चाहिये। यह कथन सौधर्म से अनुत्तरौपपातिक पर्यंत तक कह देना चाहिये।
वैमानिक देवों का अवधि क्षेत्र सोहम्मीसाणदेवां ओहिणा केवइयं खेत्तं जाणंति पासंति?
गोयमा! जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेजइभागं उक्कोसेणं अहे जाव रयणप्पभा · पुढवी उढे जाव साइं विमाणाइं तिरियं जाव असंखेजा दीवसमुद्दा एवं
सक्कीसाणा पढमं दोच्चं च सणंकुमारमाहिंदा। .. तच्चं च बंभलंतम सुक्कसहस्सारग चउत्थी॥१॥ आणयपाणयकप्पे देवा पासंति पंचमिं पुढविं। तं चेव आरणच्चुय ओहीणाणेण पासंति॥२॥ छट्टि हेट्टिममज्झिमगेवेज्जा सत्तमिं च उवरिल्ला। संभिण्णलोगणालिं पासंति अणुत्तरा देवा ॥३॥२१६॥
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! सौधर्म ईशान कल्प के देव अवधिज्ञान के द्वारा कितने क्षेत्र को जानते देखते हैं? .. उत्तर - हे गौतम! सौधर्म और ईशान कल्प के देव अवधिज्ञान के द्वारा जघन्य से अंगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण क्षेत्र को और उत्कृष्ट से नीची दिशा में रत्नप्रभा पृथ्वी तक ऊँची दिशा में अपने अपने विमानों के ऊपरी भाग ध्वजा पताका तक और तिरछी दिशा में असंख्यात द्वीप समुद्रों को जानते देखते हैं। आगे के देवों का अवधि क्षेत्र इन तीन गाथाओं में कहा गया है -
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org