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तृतीय प्रतिपत्ति - वैमानिक देवों के शरीर का स्पर्श
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वैमानिक देवों के शरीर का वर्ण सोहम्मीसाणेसु० देवा केरिसया वण्णेणं पण्णत्ता?
गोयमा! कणगत्तयरत्ताभा वण्णेणं पण्णत्ता। सणंकुमारमाहिंदेसु णं० पउमपम्हगोरा वण्णेणं पण्णत्ता। बंभलोगे णं भंते!०? गोयमा! अल्लमधुगवण्णाभा वण्णेणं पण्णत्ता, एवं जाव गेवेज्जा, अणुत्तरोववाइया परमसुक्किल्ला वण्णेणं पण्णत्ता॥
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! सौधर्म-ईशान के देवों के शरीर का वर्ण कैसा कहा गया है?
उत्तर - हे गौतम! तपे हुए स्वर्ण के समान लाल आभा युक्त उनके शरीर का वर्ण है। सनत्कुमार और माहेन्द्र कल्प के देवों का वर्ण पद्म, कमल के पराग के समान गौर है। ब्रह्मलोक कल्प के देवों का वर्ण गीले महुए जैसा सफेद है। इसी प्रकार यावत् ग्रैवेयक तक के देवों का वर्ण कह देना चाहिए अनुत्तरौपताकि देव परम शुक्ल वर्ण के हैं।
वैमानिक देवों के शरीर की गंध सोहम्मीसाणेसणं भंते! कप्पेस देवाणं सरीरमा केरिसया गंधेणं पण्णत्ता?
गोयमा! से जहा णामए-कोट्ठपुडाण वा तहेव सव्वं जाव मणामतरगा चेव गंधेणं पण्णत्ता जाव अणुत्तरोववाइया॥
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! सौधर्म-ईशान कल्प के देवों के शरीर की गंध कैसी है?
उत्तर - हे गौतम! जैसे कोष्ठपुट आदि सुगंधित द्रव्यों की सुगंध होती है उससे भी अधिक इष्ट कांत यावत् मनाम गंध उनके शरीर की होती है यावत् अनुत्तरौपपातिक देवों तक ऐसी ही समझना चाहिये।
वैमानिक देवों के शरीर का स्पर्श सोहम्मीसाणेसु० देवाणं सरीरगा केरिसया फासेणं पण्णत्ता?
गोयमा! थिरमउयणिद्धसुकु मालच्छवि फासेणं पण्णत्ता, एवं जाव अणुत्तरोववाइया॥ . भावार्थ -प्रश्न - हे भगवन् ! सौधर्म ईशान कल्प के देवों के शरीर का स्पर्श कैसा कहा है ?
उत्तर - हे गौतम! उनके शरीर का स्पर्श स्थिर रूप से मृदु स्निग्ध और मुलायम छवि वाला कहा गया है। इसी प्रकार यावत् अनुत्तरौपपातिक देवों तक कह देना चाहिये।
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