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जीवाजीवाभिगम सूत्र
वैमानिक देवों में संहनन .. सोहम्मीसाणेसु णं० देवाणं सरीरगा किंसंघयणी पण्णत्ता?
गोयमा! छण्हं संघयणाणं असंघयणी पण्णत्ता, णेवट्ठी णेव छिरा णवि पहारू णेव संघयणमत्थि, जे पोग्गला इट्टा कंता जाव ते तेसिं संघायत्ताए परिणमंति जाव अणुत्तरोववाइया॥
भावार्थ-प्रश्न - हे भगवन् ! सौधर्म ईशान कल्प में देवों के शरीर का संहनन कौनसा कहा गया है ?
उत्तर - हे गौतम! छह संहननों में से उनमें एक भी संहनन नहीं होता क्योंकि उनके शरीर में न हड्डियाँ होती हैं, न शिराएं होती है और न ही नसें होती हैं। अत: वे असंहननी हैं। जो पुद्गल इष्ट कांत यावत् मनोज्ञ होते हैं वे उनके शरीर रूप में एकत्रित होकर तथारूप परिणत होते हैं। इसी प्रकार यावत् अनुत्तरौपपातिक देवों तक समझना चाहिए।
वैमानिक देवों में संस्थान सोहम्मीसाणेसु० देवाणं सरीरगा किंसंठिया पण्णत्ता?
गोयमा! दुविहा सरीरा पण्णत्ता तंजहा - भवधारणिज्जा य उत्तरवेउव्विया य, तत्थ णं जे ते भवधारणिजा ते समचउरंससंठाणसंठिया पण्णत्ता, तत्थ णं जे ते उत्तरवेउव्विया ते णाणासंठाणसंठिया पण्णत्ता जाव अच्चुओ, अवेउव्विया गेविजणुत्तरा, भवधारणिज्जा समचउरंस-संठाणसंठिया उत्तरवेउव्विया णत्थि॥२१४॥
भावार्थ-प्रश्न- हे भगवन् ! सौधर्म ईशान कल्प में देवों के शरीर का संस्थान कैसा कहा गया है?
उत्तर - हे गौतम! उनके शरीर दो प्रकार के कहे गये हैं। यथा - १. भवधारणीय और २. उत्तरवैक्रिय। जिनका भवधारणीय शरीर है उनका संस्थान समचतुरस्र है और जो उत्तर वैक्रिय शरीरधारी है उनका संस्थान नाना प्रकार का होता है। यह कथन अच्युत देवलोक तक कहना चाहिये। ग्रैवेयक और अनुत्तर विमान के देव उत्तरविक्रिया नहीं करते। उनका भवधारणीय शरीर समचतुरस्रसंस्थान वाला है। वहाँ उत्तर विक्रिया नहीं है।
विवेचन - देव उत्तर वैक्रिय द्वारा ६ संस्थानों के अतिरिक्त स्तिबुक आदि संस्थान भी बना सकते हैं। इस अपेक्षा से इनके लिए नाना संस्थान संस्थित बताया गया है।
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