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________________ २५० जीवाजीवाभिगम सूत्र ++++++++++++++++++++++.......................................... चंदविमाणस्स णं उत्तरेणं सेयाणं सुभगाणं सुप्पभाणं जच्चाणं वरमल्लिहायणाणं हरिमेलामदुलमल्लियच्छाणं घणणिचिय-सुबद्धलक्खणुण्णया-चंकमि( चंचुच्चि) यललियपुलिय-चल-चवल-चंचल-गईणं लंघणवग्गणधावणधारणतिवइजइणसिक्खियगईणं ललंतलामगलायवरभूसणाणं संणयपासाणं संगयपासाणं सुजायपासाणं मियमाइयपीणरइयपासाणं झसविहगसुजायकुच्छीणं पीणपीवरवट्टिय-सुसंठियकडीणं ओलंबपलंबलक्खणपमाण-जुत्तपसत्थरमणिजवालगंडाणं तणुसुहुमसुजायणिद्धलोमच्छविधराणं मिउविसयपसत्थसुहुमलक्खणविकिण्णके सरवालिधराणं ललियलासगगइ( ललंतथासगल)लाडवरभूसणाणं मुहमंडगोचूल-चमरथासगपरिमंडियकडीणं तवणिजखुराणं तवणिज-जीहाणं तवणिज्जतालुंयाणं तवणिजजोत्तग-सुजोइयाणं कामगमाणं पीइगमाणं मणोगमाणं मणोरमाणं मणोहराणं अमियगईणं अमियबलवीरियपुरिसक्कारपरक्कमाणं महया हयहेसियकिलकिलाइयरवेणं महुरेणं मणहरेण य पूरेता अंबरं दिसाओ य सोभयंता चत्तारि देवसाहस्सीओ हयरूवधारीणं देवाणं उत्तरिल्लं बाहं परिवहंति॥ कठिन शब्दार्थ - संखतलविमल-णिम्मल-दहिघणगोखीर-फेण-रययणियरप्पगासाणं - शंख के तल के समान विमल और निर्मल, जमे हुए दही गाय का दूध, फेन, रजतनिकर (चांदी के समूह) के समान श्वेत प्रभा वाले, मधुगुलियपिंगलक्खाणं - मधुगुलितपिंगलाक्षाणां-शहद की गोली के समान पीली आंखें, थिरल पउट्ठ)वट्टपीवरसुसिलिट्ठविसिट्ठतिक्खदाढा-विडंबियमुहाणं - स्थिरलष्ट (प्रजुष्ट)वृत्तपीवरसुश्लिष्ट सुविशिष्ट तीक्ष्ण दंष्ट विडम्बित मुखानां-उनके मुख में स्थित सुदर प्रकोष्टों से युक्त गोल, मोटी, परस्पर जुडी हुई विशिष्ट और तीखी दाढाएं, रत्तुप्पलपत्तमउयसुकुमालतालुजीहाणंताल कमल के पत्ते के समान मृदु एवं सुकोमल तालु और जीभ, पसत्थ सत्थ वेरुलियभिसंतकक्कडणहाणं - प्रशस्त और शुभ वैडूर्य मणि की तरह चमकते हुए, कर्कश नख, विसालपीवरोरुपद्धिपुण्णविउलखंधाणं - विशाल और मोटे उरु, प्रतिपूर्ण, विपुल खंधे, मिउविसयपसत्थसुहुम-लक्खण विच्छिण्ण-केसरसडोव सोभियाणं - मृदुविशद प्रशस्त सूक्ष्म लक्षण विस्तीर्ण केसर सटोप शोभितानाम्-केसरसटा मृदु, विशद, प्रशस्त, सूक्ष्म लक्षण युक्त विस्तृत होती है, चंकमियललियपुलियधवलगव्वियगईणं - चंक्रमितललितपुलित धवल गर्वित गतिनाम्-चंक्रमित और उछलने कूदने से साफ सुथरी गर्वित (मस्तानी) गति वाले, उस्सिय सुणिम्मिय सुजायअप्फोडियणंगूलाणं - उच्छ्रित सुनिर्मित सुजाताऽऽस्फालितलांगूलानां-ऊंची उठी हुई सुनिर्मित सुजात और फटकार युक्त Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org|
SR No.004195
Book TitleJivajivabhigama Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2003
Total Pages422
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size9 MB
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