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________________ २४८ जीवाजीवाभिगम सूत्र ............................................................... ज्योतिषियों में जितनी-जितनी अपनी-अपनी पीठिका की ऊंचाई बताई है उतनी-उतनी अपनेअपने विमानों की ऊंचाई समझना चाहिए। - भाग की जो ऊंचाई बताई वह सबसे मध्य वाले प्रासाद की समझना चाहिए। बाद में चारों तरफ ऊंचाई कम-कम होती जाती है जिससे मिलकर वह विमान अर्द्ध कविट्ठ के आकार का अर्द्ध गोलाकार जैसा हो जाता है। इसी प्रकार सूर्यादि सभी ज्योतिषी विमानों को समझना चाहिए। चंदविमाणे णं भंते! कइ देवसाहस्सीओ परिवहंति? गोयमा! चंदविमाणस्स णं पुरच्छिमेणं सेयाणं सुभगाणं सुप्पभाणं संखतलविमल-णिम्मल-दहिघणगोखीर-फेणरययणियरप्पगासाणं (महुगुलियपिंगलक्खाणं) थिरलट्ठ(पउट्ट )वट्टपीवरसुसिलिट्ठविसिट्ठतिक्खदाढाविडंबियमुहाणं रत्तुप्पलपत्तमउयसुकुमालतालुजीहाणं (पसत्थसत्थ-वेरुलियभिसंतकक्कडणहाणं) विसालपीवरोरु-पडिपुण्णविउलखंधाणं मिउविसय-पसत्थसुहमलक्खण-विच्छिण्णकेसरसडोवसोभियाणं चंकमियललियपुलियधवलगव्वियगईणं उस्सिय-सुणिम्मियसुजाय-अप्फोडिय-णंगूलाणं वइरामयणक्खाणं वइरामयदंताणं वइरामयदाढाणं तवणिजजीहाणं तवणिज्जतालुयाणं तवणिज्जजोत्तग-सुजोइयाणं कामगमाणं पीइगमाणं मणोगमाणं मणोरमाणं मणोहराणं अमियगईणं अमियबलवीरियपुरिसक्कारपरक्कमाणं महया अप्फोडिय-सीहणाइय-बोलकलकलरवेणं महुरेणं मणहरेण य पूरिता अंबरं दिसाओ य सोभयंता चत्तारि देवसाहस्सीओ सीहरूवधारीणं देवाणं पुरच्छिमिल्लं बाहं परिवहंति। चंदविमाणस्स णं दक्खिणेणं सेयाणं सुभगाणं सुप्पभाणं संखतलविमलणिम्मलदहिघणगोखीरफेणरययणियरप्पगासाणं वइरामयकुंभजुयलसुट्ठियपीवरवरवइरसोंडवट्टियदित्त-सुरत्तपउमप्पगासाणं अब्भुण्णयगुणा( महा )णं तवणिज्जविसालचंचल-चलंतचवलकण्णविमलुजलाणं मधुवण्णभिसंतणिद्धपिंगलपत्तलतिवण्णमणिरयणलोयणाणं अब्भुग्गयमउलमल्लियाणं धवलसरिस-संठियणिव्वणदढकसिण-फालिया-मयसुजायदंत-मुसलोवसोभियाणं कंचणकोसीपविट्ठदंतग्गविमलमणिरयणरुइलपेरंतचित्तरूवगविराइयाणं तवणिजविसालतिलगपमुहपरिमंडियाणं णाणामणिरयणगुलियगेवेजबद्धगलपवरभूसणाणं वेरुलियविचित्तदंड Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004195
Book TitleJivajivabhigama Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2003
Total Pages422
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size9 MB
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