________________
तृतीय प्रतिपत्ति- द्वीप समुद्रों की संख्या
सयंभूरमणे णं भंते! समुद्दे० ? गोयमा ! अद्धतेरस मच्छजाइकुलकोडीजोणीपमुहसयसहस्सा पण्णत्ता ॥
लवणे णं भंते! समुद्दे मच्छाणं केमहालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता ? गोयमा ! जहणणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं उक्कोसेणं पंचजोयणसयाई ॥ एवं कालोए उ० सत्त जोयणसयाई ॥ सयंभूरमणे जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं उक्कोसेणं दस जोयणसयाइं ॥ १८८ ॥
भावार्थ- प्रश्न - हे भगवन्! कितने समुद्र बहुत मत्स्य-कच्छपों वाले हैं ? हे गौतम! तीन समुद्र बहुत मत्स्य- कच्छपों वाले हैं वे हैं
उत्तर
-
लवण, कालोद और स्वयंभूरमण समुद्र । हे आयुष्मन् श्रमण ! शेष सभी समुद्र अल्प मत्स्य कच्छपों वाले कहे गये हैं । प्रश्न - हे भगवन् ! लवण समुद्र में मत्स्यों की कितनी लाख जाति प्रधान कुल कोड़ियों की योनियां कही गई है ?
२३७
-
उत्तर - हे गौतम! सात लाख मत्स्य जाति कुलकोड़ी योनियां कही है ।
प्रश्न - हे भगवन् ! कालोद समुद्र में मत्स्यों की कितनी लाख जाति प्रधान कुलकोडियों की 'योनियां है ?
उत्तर - हे गौतम! नव लाख मत्स्य जाति कुलकोडी योनियां कही है।
प्रश्न - हे भगवन् ! स्वयंभूरमण समुद्र में मत्स्यों की कितनी लाख जाति प्रधान कुल कोड़ियों की योनियां है ?
उत्तर - हे गौतम! साढे बारह लाख मत्स्य जाति कुलकोडी योनियां हैं।
प्रश्न - हे भगवन्! लवण समुद्र में मत्स्यों के शरीर की अवगाहना कितनी है ?
उत्तर - हे गौतम! लवण समुद्र में मत्स्यों की अवगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यातवां भाग और उत्कृष्ट पांच सौ योजन की है। इसी तरह कालोद समुद्र में उत्कृष्ट सात सौ योजन की अवगाहना है। स्वयंभूरमण समुद्र में मत्स्यों की अवगाहना जघन्य अंगुल का असंख्यातवां भाग और उत्कृष्ट एक हजार योजन प्रमाण है।
Jain Education International
द्वीप समुद्रों की संख्या
केवइया णं भंते! दीवसमुद्दा णामधेज्जेहिं पण्णत्ता ?
गोयमा! जावइया लोगे सुभा णामा सुभा वण्णा जाव सुभा फासा एवइया
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org