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________________ तृतीय प्रतिपत्ति- देवों का वर्णन जाता है कि असुरेन्द्र असुरराज चमर की तीन परिषदाएं हैं । यथा - समिता, चंडा और जाता । आभ्यंतर परिषद् समिता, मध्यम परिषद् चंडा और बाह्य परिषद् जाता कही गई है। विवेचन प्रस्तुत सूत्र में चमरेन्द्र की परिषद् का वर्णन किया गया है। यहाँ पर इन्द्रों की आभ्यंतर परिषद् में देवों की संख्या कम बताई है क्योंकि इस परिषद् के देव उच्च स्थानीय होने से सामान्य देवों के लिए आदरणीय होते हैं। आगे की दोनों परिषदाओं में देवों की संख्या क्रमशः अधिक-अधिक बताई है। वे देव प्रथम परिषद् से क्रमशः निम्न स्तरीय होते हैं। देवियों में तो आभ्यंतर परिषद् की देवियों की संख्या सबसे ज्यादा बताई है। वे देवियां परिचारिकाओं के समान होती है । वे आभ्यंतर परिषद् के देवों की सुविधा (नाच, गान आदि से मन को बहलाने) के लिए होती है । शेष दोनों परिषदाओं की देवियां क्रमशः कम-कम होती है। क्योंकि दूसरी तीसरी परिषद् के देव ज्यादा होने पर भी उनके सुविधा कम होने से देवियों की संख्या कम-कम बताई है। प्रथम परिषद् के देव गजधर की तरह कार्य का निर्णय करते हैं । दूसरी परिषद् के देव कार्य को कार्यान्वित करने का नक्शा तैयार करते हैं। तीसरी परिषद् के देव कार्य को कार्यान्वित करते हैं। परिषदा के देव देवियां कर्मचारी वर्ग की तरह होते हैं वे कार्य करने में होशियार होते हैं। अतः उनसे सलाह लेने आदि का कार्य किया जाता है । सामानिक आदि देव तो जागीरदार की तरह अधिकारी के समान होते हैं, उनको कोई कार्य नहीं करना पड़ता है। तीनों परिषदाओं की देवियां अपरिगृहीता देवियां समझी जाती है। I कहि णं भंते! उत्तरिल्लाणं असुरकुमाराणं भवणा पण्णत्ता ? जहा ठाणपए जाव बली, एत्थ वइरोयणिंदे वइरोयणराया परिवसइ जाव विहरइ ॥ भावार्थ - हे भगवन् ! उत्तर दिशा के असुरकुमारों के भवन कहां कहे गये हैं ? हे गौतम! जिस प्रकार स्थान पद में कहा गया है उसी प्रकार यहां भी कह देना चाहिये यावत् वहां वैरोचनेन्द्रं वैरोचनराज बलि निवास करता है यावत् दिव्य भोगों का उपभोग करता हुआ विचरता है । बलिस्स णं भंते! वयरोयणिंदस्स वइरोयणरण्णो कइ परिसाओ पण्णत्ताओ ? गोयमा ! तिणि परिसाओ प०, तं जहा समिया चंडा जाया, अब्भिंतरिया समिया मज्झिमया चंडा बाहिरिया जाया । बलिस्स णं भंते! वइरोयणिंदस्स वइरोयणरण्णो अब्धिंतरियाए परिसाए कई देवसहस्सा ? मज्झिमिया परिसाए कई देवसहस्सा जाव बाहिरियाए परिसाए कई देविसया पण्णत्ता ? गोयमा ! बलिस्स णं वइरोयणिंदस्स २ अब्धिंतरियाए परिसाए वीसं देवसहस्सा पण्णत्ता, मज्झिमियाए परिसाए चउवीसं देवसहस्सा पण्णत्ता, बाहिरियाए परिसाए अट्ठावीसं देवसहस्सा पण्णत्ता, अब्धिंतरियाए परिसाए अद्धपंचमा देविसया पण्णत्ता, Jain Education International - - For Personal & Private Use Only ७ www.jainelibrary.org
SR No.004195
Book TitleJivajivabhigama Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2003
Total Pages422
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size9 MB
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