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________________ जीवाजीवाभिगम सूत्र आभ्यंतर परिषद् की देवियों की स्थिति डेढ पल्योपम, मध्यम परिषद् की देवियों की स्थिति एक पल्योपम की और बाह्य परिषद् की देवियों की स्थिति आधे पल्योपम की है। से केणद्वेणं भंते! एवं वुच्चइ-चमरस्स असुरिंदस्स तओ परिसाओ पण्णत्ताओ, तं जहा - समिया चंडा जाया, अभिंतरिया समिया मज्झिमिया चंडा बाहिरिया जाया? गोयमा! चमरस्स णं असुरिंदस्स असुररण्णो अब्भिंतरपरिसाए देवा वाहिया हव्वमागच्छंति णो अव्वाहिया, मज्झिमपरिसाए देवा वाहिया हव्वमागच्छंति अव्वाहियावि, बाहिरपरिसाए देवा अव्वाहिया हव्वमागच्छंति, अदुत्तरं च णं गोयमा! चमरे असुरिंदे असुरराया अण्णयरेसु उच्चावएसु कज्जकोडंबेसु समुप्पण्णेसु अभिंतरियाए परिसाए सद्धिं संमइसंपुच्छणाबहुले विहरइ मज्झिमपरिसाए सद्धिं पयं एवं पवंचेमाणे पवंचेमाणे विहरइ बाहिरियाए परिसाए सद्धिं पयंडेमाणे पयंडेमाणे विहरइ, से तेणद्वेणं गोयमा! एवं वुच्चइ-चमरस्स णं असुरिदस्स असुरकुमाररण्णो तओ परिसाओ पण्णत्ताओ समिया चंडा जाया, अब्भिंतरिया समिया मज्झिमिया चंडा बाहिरिया जाया॥११८॥ कठिन शब्दार्थ - अव्वाहिया - अव्याहृताः-बिना बुलाये, वाहिया - व्याहृता:-बुलाये जाने पर उच्चावएसु - ऊंचे-नीचे, शोभन-अशोभन, सम्मइ - सम्मति लेता है, संपुच्छणा - संपृच्छना-पूछताछ करता है, पवंचेमाणे - प्रपञ्चयन-समझाता हुआ, पयंडेमाणे- आज्ञा देता हुआ। भावार्थ - हे भगवन् ! ऐसा किस कारण से कहा जाता है कि असुरेन्द्र असुरराज चमर की तीन परिषदाएं हैं। यथा - समिता, चंडा और जाता। आभ्यंतर परिषद् समिता, मध्यम परिषद् चंडा और बाह्य परिषद् जाता कहलाती है। हे गौतम! असुरेन्द्र असुरराज चमर की आभ्यंतर परिषद् के देव बुलाये जाने पर आते हैं, बिना बुलाये नहीं आते। मध्यम परिषद् के देव बिना बुलाये भी आते हैं और बुलाने पर भी आते हैं बाह्य परिषद् के देव बिना बुलाये आते हैं। __ हे गौतम! दूसरा कारण यह है कि असुरेन्द्र असुरराज चमर किसी प्रकार के ऊंचे-नीचे, शोभनअशोभन कौटुम्बिक कार्य के आ पड़ने पर आभ्यंतर परिषद् के साथ विचारणा करता है, उनकी सम्मति लेता है। मध्यम परिषद् को अपने निश्चित किये कार्य की सूचना देकर उन्हें स्पष्टता के साथ कारण आदि समझाता है और बाह्य परिषद् को आज्ञा देता हुआ विचरता है। इस कारण हे गौतम ! ऐसा कहा Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004195
Book TitleJivajivabhigama Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2003
Total Pages422
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size9 MB
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