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तृतीय प्रतिपत्ति समय क्षेत्र (मनुष्य क्षेत्र) का वर्णन
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भावार्थ - जिन द्वीपों और समुद्रों में नक्षत्र, ग्रह एवं ताराओं की संख्या जानने की इच्छा हो तो उन द्वीपों और समुद्रों के चन्द्र सूर्यों की संख्या को एक एक चन्द्र सूर्य परिवार से गुणा करना चाहिये । विवेचन - प्रस्तुत गाथा में द्वीप समुद्रों में नक्षत्र, ग्रह एवं ताराओं का प्रमाण जानने की विधि बताई गई है। जैसे - लवण समुद्र में ४ चन्द्रमा है। एक एक चन्द्र परिवार में २८ नक्षत्र, ८८ ग्रह और ६६९७५ कोडाकोडी तारे हैं। अतः लवण समुद्र में नक्षत्रों की संख्या २८x४ = ११२, ग्रहों की संख्या ८८x४=३५२ और तारों की संख्या ६६९७५ x ४ = २,६७,९०० कोडाकोडी है। अन्य द्वीपों एवं समुद्रों के लिये भी इसी विधि से गणना करने पर उन द्वीपों एवं समुद्रों में नक्षत्र, ग्रह एवं ताराओं की संख्या ज्ञात की जा सकती है।
चंदाओ सूरस्स य सूरा चंदस्स अंतरं होई ।
पण्णास सहस्साइं तु जोयणाणं अणूणाई ॥ २७ ॥
भावार्थ - चन्द्र से सूर्य का और सूर्य से चन्द्र का अन्तर पचास पचास हजार योजन का है। यह अंतर मनुष्य क्षेत्र के बाहर के चन्द्र और सूर्य का है ।
सूरस्स य सूरस्स य ससिणो ससिणो य अंतर होई ।
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'बहियाओ मणुस्सणगस्स जोयणाणं सयसहस्सं ॥ २८ ॥
भावार्थ - सूर्य से सूर्य का और चन्द्र से चन्द्र का अन्तर मानुषोत्तर पर्वत के बाहर एक लाख योजन का है।
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सूरतरिया चंदा चंदंतरिया य दिणयरा दित्ता ।
चित्तंतरलेसागा सुहलेसा मंदलेसा य ॥ २९॥
भावार्थ - मनुष्य लोक के बाहर पंक्ति रूप में अवस्थित सूर्यान्तरित चन्द्र और चन्द्रान्तरित सूर्य अपने तेज:पुंज से प्रकाशित होते हैं। इनका अंतर और प्रकाश रूप लेश्या विचित्र प्रकार की है। अर्थात् चन्द्रमा का प्रकाश शीतल है और सूर्य का प्रकाश उष्ण है। इन चन्द्र सूर्यों का प्रकाश एक दूसरे से अन्तरित होने से न तो मनुष्य लोक की तरह अति शीतल होता है और न अति उष्ण होता है किंतु सुख रूप होता है।
अट्ठासीइं च गहा अट्ठावीसं च होंति णक्खत्ता । एससीपरिवारो एत्तो ताराण वोच्छामि ॥ ३०॥ भावार्थ - एक चन्द्रमा के परिवार में ८८ ग्रह और २८ नक्षत्र होते की गाथाओं में कहते हैं ।
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। ताराओं का प्रमाण आगे
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