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________________ २०२ जीवाजीवाभिगम सूत्र अंतो मणुस्सखेत्ते हवंति चारोवगा य उववण्णा। पंचविहा जोइसिया चंदा सूरा गहगणा य॥ २१॥ भावार्थ - मनुष्य क्षेत्र के अंदर चन्द्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र और तारा गण, ये पांच प्रकार के ज्योतिषी 'चर गतिशील हैं। तेण परं जे सेसा चंदाइच्चगहतारणक्खत्ता। णथि गई णवि चारो अवट्ठिया ते मुणेयव्वा। ३२॥ भावार्थ - अढाई द्वीप के बाहर जो पांच प्रकार के ज्योतिषी (चन्द्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र और तारा) हैं वे अचर (गति नहीं करते) हैं, मण्डल गति से परिभ्रमण नहीं करते अतएव अवस्थित (स्थित) हैं। . दो चंदा इह दीवे चत्तारि य सागरे लवणतोए। धायइसंडे दीवे बारस चंदा य सूरा य॥ २३॥ भावार्थ - इस जंबूद्वीप में दो चन्द्र दो सूर्य है। लवण समुद्र में चार चन्द्र और चार सूर्य हैं। धातकीखण्ड में १२ चन्द्र और १२ सूर्य हैं। दो दो जंबुद्दीवे ससिसूरा दुगुणिया भवे लवणे। लावणिगा य तिगुणिया ससिसूरा धायईसंडे॥ २४॥ भावार्थ - जंबूद्वीप में दो चन्द्र दो सूर्य हैं। इनसे दुगुने लवण समुद्र में हैं और लवण समुद्र से तिगुने चन्द्रसूर्य धातकीखण्ड में हैं। धायइसंडप्पभिई उद्दिट्ठतिगुणिया भवे चंदा। आइल्लचंद सहिया अणंतराणंतरे खेत्ते॥ २५॥ . भावार्थ - धातकीखण्ड के आगे के समुद्र और द्वीपों में चन्द्रों और सूर्यों का प्रमाण, पूर्व के द्वीप या समुद्र के प्रमाण को तिगुना करके उसमें पूर्व-पूर्व के सब चन्द्रों और सूर्यों को जोड़ देना चाहिये। विवेचन - प्रस्तुत गाथा में आगे के द्वीपों और समुद्रों में चन्द्रों और सूर्यों की संख्या जानने की विधि बताई गई है। जैसे धातकीखण्ड द्वीप में १२ चन्द्र और १२ सूर्य कहे हैं तो कालोदधि समुद्र में १२४३=३६ तथा पूर्व पूर्व के ६ (जंबूद्वीप के २ और लवण समुद्र के चार) चन्द्र सूर्य जोड़ने पर कुल संख्या ४२ आती है। इस प्रकार कालोदधि समुद्र में ४२ चन्द्र और ४२ सूर्य है। इसी विधि से आगे के द्वीप समुद्रोंमें चन्द्रों और सूर्यों की संख्या जानी जा सकती है। रिक्खग्गहतारग्गं दीवसमुद्दे जहिच्छसे णाउं। तस्स ससीहिं गुणियं रिक्खग्गहतारगाणं तु॥ २६ ॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004195
Book TitleJivajivabhigama Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2003
Total Pages422
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size9 MB
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