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________________ तृतीय प्रतिपत्ति - समय क्षेत्र (मनुष्य क्षेत्र) का वर्णन २०१ .0000000000000000000000000000000000000000000000000.............. भावार्थ - शुक्लपक्ष में चन्द्रमा प्रतिदिन ६२ भाग तक बढ़ता है और कृष्णपक्ष में चन्द्रमा ६२ भाग प्रमाण घटता है। विवेचन - बासठ भाग से आशय यहां ४ भाग से हे जो इस प्रकार समझना चाहिये - चन्द्र विमान के ६२ भाग करने चाहिये। वे यहाँ भव में समुदाय के उपचार से ६२ शब्द से कहे गये हैं। शुक्लपक्ष में चन्द्रमा प्रतिदिन ६२ भाग तक बढ़ता है इसका तात्पर्य है कि वह ४-४ झाझेरा भाग तक बढ़ता है इसी तरह कृष्णपक्ष में चन्द्रमा ६२ भाग तक घटता है इसका तात्पर्य है कि वह ४-४ झाझेरा भाग तक घटता है। आगम (चन्द्र प्रज्ञप्ति) में – 'सव्व रत्ते सव्व विरत्ते' पाठ आया है अर्थात् पूर्णिमा की रात्रि में चन्द्रमा की बासठ ही कलाएं पूर्ण रूप से खुली रहती है। अमावस्या की रात्रि में चन्द्रमा की बासठ ही कलाएं आवृत (ढकी) रहती है दो कलाएं भी खुली नहीं रहती हैं। तथा समवायांग सूत्र के १५ वें समवाय में भी चन्द्रमा की १५ कलाएं (प्रतिदिन की एक एक कला गिनने से) ही बताई है। ... उत्तराध्ययन सूत्र के ९वें अध्ययन में -'कलं अग्घइ सोलसिं' पाठ बताया है वहां पर लोक व्यवहार की दृष्टि से १६ वीं कला खुला रहना बता दिया है। जैसे उसी अध्ययन में आगे केलाससमा असंखया' पाठ में लोक में प्रचलित कैलाश पर्वत (हिमालय पर्वत पर शिवजी के रहने की पर्वतमाला) की उपमा दी गई है। वैसे ही यहां पर भी समझना चाहिए। चन्द्रमा का ६२ कलाओं में से प्रति दिन रात ४-४ झाझेरी कलाओं का ढकना समझना चाहिए। पण्णरसइभागेण य चंदं पण्णरसमेव तं वरइ। पण्णरसइभागेण य पुणोवि तं चेव तिक्कमइ॥ १९॥ भावार्थ - कृष्णपक्ष में चन्द्र विमान के पन्द्रहवें भाग को राहु विमान अपने पन्द्रहवें भाग से ढंक लेता है और शुक्लपक्ष में उसी पन्द्रहवें भाग को मुक्त कर देता है। - विवेचन - यहां चन्द्र विमान के और राहु विमान के १५-१५ भाग कर लेना चाहिये। कृष्णपक्ष में राहु विमान चन्द्रबिमान के एक-एक भाग को ढकता है तो शुक्लपक्ष में राहु विमान चन्द्रविमान के एक-एक भाग को खुला कर देता है। कृष्णपक्ष में एक-एक भाग ढकते जाने से अमावस्या तक उसके सब भाग ढक जाते हैं और शुक्लपक्ष में पूर्णिमा तक एक-एक भाग खुला होते होते सब भाग खुले हो जाते हैं। एवं वड्डइ चंदो परिहाणी एव होइ चंदस्स। कालो वा जोण्हा वा तेणणुभावेण चंदस्स॥ २०॥ भावार्थ - इस प्रकार चन्द्रमा की वृद्धि और हानि होती है। इसी कारण कृष्णपक्ष और शुक्लपक्ष होते हैं। (शुक्लपक्ष में चन्द्रमा बढ़ता है और कृष्णपक्ष में चन्द्रमा घटता है।) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004195
Book TitleJivajivabhigama Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2003
Total Pages422
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size9 MB
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