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जीवाजीवाभिगम सूत्र
छावट्ठिसहस्साई णव चेव सयाइं पंचसयराइं। एगससीपरिवारो तारागण-कोडिकोडीणं॥३१॥ भावार्थ - एक चन्द्रमा के परिवार में ६६ हजार नौ सौ ७५ कोडाकोडी तारे हैं।
विवेचन - यहां पर कोटाकोटि शब्द की व्याख्या करते हुए टीकाकार ने विशेषणवती ग्रन्थ (आचार्य जिन भद्रगणि क्षमाश्रमण द्वारा रचित) की गाथा को बताकर अर्थ किया है। यथा - कितनेक आचार्य कोटाकोटि को संज्ञान्तर (अन्य संख्या के अर्थ में) मानते हैं। अत: ज्योतिष्क विमान थोड़े ही हैं। अन्य आचार्य-तारा विमानों का माप उत्सेध अंगुल से करके तारा विमानों की आगमिक संख्या को इतने क्षेत्र में समावेश होना बताते हैं। जम्बूद्वीप सबसे छोटा होने से उसके तारा विमान सभी जंबूद्वीप में समावेश नहीं होते हैं अत: उनको लवण समुद्र के विस्तार के छठे हिस्से तक में (३३३३३१ योजन में) समावेश होना बताया गया है।
बहियाओ माणुसणगस्स चंदसूराणऽवट्ठिया जोगा। चंदा अभीइजुत्ता सूरा पुण होंति पुस्सेहिं॥ ३२॥ १७७॥
भावार्थ - मानुषोत्तर पर्वत के बाहर के चन्द्र और सूर्य अवस्थित योग वाले हैं। चन्द्र अभिजित् नक्षत्र से और सूर्य पुष्य नक्षत्र से युक्त रहते हैं। ___ माणुसुत्तरे णं भंते! पव्वए केवइयं उड्ढे उच्चत्तेणं? केवइयं उव्वेहेणं? केवइयं मूले विक्खम्भेणं? केवइयं मज्झे विक्खंभेणं? केवइयं सिहरे विक्खंभेणं? केवइयं अंतो गिरिपरिरएणं? केवइयं बाहिं गिरिपरिरएणं? केवइयं मज्झे गिरिपरिरएणं? केवइयं उवरि गिरिपरिरएणं?,
गोयमा! माणुसुत्तरे णं पव्वए सत्तरस एक्कवीसाइं जोयणसयाई उड्डे उच्चत्तेणं चत्तारि तीसे जोयणसए कोसं च उव्वेहेणं मूले दसबावीसे जोयणसए विक्खंभेणं मज्झे सत्ततेवीसे जोयणसए विक्खंभेणं उवरि चत्तारिचउवीसे जोयणसए विक्खंभेणं अंतो गिरिपरिरएणंएगा जोयणकोडी बायालीसं च सयसहस्साइं। तीसं च सहस्साइं दोण्णि य अउणापण्णे जोयणसए किंचिविसेसाहिए परिक्खेवेणं, बाहिरगिरिपरिरएणं एगा जोयणकोडी बायालीसं च सयसहस्साइं छत्तीसं च सहस्साइं सत्तचोइसोत्तरे जोयणसए परिक्खेवेणं, मज्झे गिरिपरिरएणं एगा जोयणकोडी बायालीसं च सयसहस्साइं चोत्तीसं च सहस्सा अट्ठतेवीसे जोयणसए परिक्खेवेणं, उवरि गिरिपरिरएणं
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